सादगी और सरलता की प्रतिमूर्ति थे कल्याण देवः कपिल देव

स्वामी कल्याण देव की 20वीं पुण्यतिथि पर शुकतीर्थ के शुकदेव आश्रम में आयोजित हुई श्रद्धांजलि सभा, मंत्री कपिल देव और जिला पंचायत अध्यक्ष वीरपाल निर्वाल ने अर्पित किये श्रद्धासुमन

Update: 2024-07-13 09:54 GMT

मुजफ्फरनगर। शिक्षा )षि पद्म भूषण स्वामी कल्याण देव की 20वीं पुण्यतिथि पूर्ण श्रद्धा भाव के साथ मनाई गई। इस अवसर पर शुकतीर्थ स्थित शुकदेव आश्रम में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। यहां पहुंचे मंत्री कपिल देव अग्रवाल, जिला पंचायत अध्यक्ष डॉ. वीरपाल निर्वाल सहित अन्य अतिथियों और लोगों का आश्रम के पीठाधीश्वर स्वामी ओमानंद ने सत्कार किया। मंत्री सहित अन्य लोगों ने स्वामी कल्याण देव को याद करते हुए उनकी समाधि और प्रतिमा पर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए नमन किया।

वीतराग स्वामी कल्याणदेव महाराज के विराट पुरुषार्थ, तप और त्याग की कर्म गाथा अमर है। 129 वर्ष आयु के दीर्घ जीवन में उन्होंने हर घड़ी को जनसेवा के लिए जिया। सेवाभावी संत के दर्शन और समर्पण से पौराणिक शुकतीर्थ देश के मुख्य धार्मिक तथा आध्यात्मिक केंद्रों में गरिमा से चमक रहा है। महामुनि श्री शुकदेव की तपोभूमि शुकतीर्थ में संत विभूति स्वामी कल्याणदेव 14 जुलाई, 2004 में ब्रह्मलीन हुए थे। प्रति वर्ष भागवत पीठ शुकदेव आश्रम में उनकी पुण्यतिथि श्रद्धा एवं भक्ति से मनाई जाती है। महाभारत कालीन जीर्ण-शीर्ण इस तीर्थ का कैसे वीतराग संत ने जीर्णाेद्धार किया, ये अद्भुत है और अकल्पनीय भी। वर्ष 1943-44 की अवधि में प्रयागराज में कुंभ लगा था। देश के शंकराचार्य, संत-महात्माओं ने संगम तट पर गंगाजल हाथ में देकर स्वामी जी से शुकतीर्थ के जीर्णाेद्धार का संकल्प लिया। निर्जन जंगल और तीर्थ में वीतराग संत पग पड़े। उन्होंने भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय की राय से वृंदावन के विद्वानों से पूरे वर्ष का अखंड भागवत पाठ करा कर अपने संकल्प में आहुति दी। धीरे-धीरे ये तीर्थ भागवत के मर्मज्ञों का कथा केंद्र बन गया। पूरे भारत से कथा व्यास और श्रद्धालु भागवत सप्ताह के लिए यहां आते है। स्वामी जी की सेवा, सादगी और सरलता से अभिभूत हुए बिना कोई नहीं बचा। उनकी अनूठी संतई के आगे देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तक नतमस्तक रहे। शुकतीर्थ को दिव्य धाम बना गए स्वामी कल्याणदेव के अतुल्य पुरुषार्थ की अमर गाथा पीढ़ियों की प्रेरक रहेगी। भागवत पीठ श्री शुकदेव आश्रम के पीठाधीश्वर स्वामी ओमानंद महाराज बताते है कि पूज्य गुरुदेव सनातन संस्कृति के मुकुट थे। शुकतीर्थ उनके कर्म की अमर गाथा का प्रतीक है।

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ब्रह्मलीन स्वामी कल्याणदेव जी महाराज का जन्म वर्ष 1876 में उनके ननिहाल में बागपत जनपद के गांव कोताना में हुआ था। उनका पालन पोषण मुजफ्फरनगर जनपद के अपने गांव मुंडभर में हुआ था। उन्होंने वर्ष 1900 में मुनि की रेती ऋषिकेश में गुरुदेव स्वामी पूर्णानंद जी से संन्यास की दीक्षा ली थी। अपने 129 वर्ष के जीवनकाल में उन्होंने 100 वर्ष जनसेवा में गुजारे। स्वामी जी ने करीब 300 शिक्षण संस्थाओं के साथ गऊशालाओं, वृद्ध आश्रमों, चिकित्सालयों आदि का निर्माण कराकर समाजसेवा में उत्कृष्ट छाप छोड़ी। उनके सामाजिक कार्यों के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने पदमश्री से सम्मानित किया। स्वामी कल्यादेव जी ने 14 जुलाई 2004 को शुक्रताल में एकादशी के दिन रात्रि 12 बजकर 20 मिनट पर अंतिम सांस ली थी।

इस अवसर पर मंत्री कपिल देव अग्रवाल ने स्वामी कल्याणदेव के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वह सादगी व सरलता की प्रतिमूर्ति थे। मानव सेवा की भावना उनके भीतर कूट-कूट कर भरी हुई थी। स्वामी महाराज ने बहुत कम उम्र में घर का त्याग कर संयास धारण कर लिया था। प्रसिद्ध तीर्थ स्थल शुक्रताल को विकसित करने का श्रेय स्वामी कल्यादेव महाराज को ही जाता है। उनके संकल्प को पूर्ण करने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शुकतीर्थ विकास परिषद् का गठन किया और यहां पर गंगा की अविरल धारा को लाने का काम किया गया है। 

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