देवबंद न्यूज़: जैन समाज द्वारा चल रहे दशलक्षण महापर्व का नौवां दिन उत्तम अकिंचन धर्म के रूप में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया गया। सुबह से ही जैन मंदिरों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रही और धार्मिक वातावरण में भक्ति भाव गूंजता रहा।
प्राचीन जैन मंदिर में अभिषेक और शांतिधारा
देवबंद स्थित प्राचीन जैन मंदिर में जैन धर्म के नौवें तीर्थंकर भगवान श्री 1008 पुष्पदंत जी की प्रतिमा का अभिषेक, शांतिधारा और पूजा-अर्चना की गई। इसी क्रम में नगर में चातुर्मास कर रहे जैन संत आचार्य श्री 108 अरुण सागर जी महाराज के सानिध्य में दिगंबर पारसनाथ जैन मंदिर सरागवाड़ा में विशेष धार्मिक आयोजन संपन्न हुआ।
अभिषेक और शांतिधारा के बाद नवदेवता पूजा, पारसनाथ पूजा, सोलहकरण पूजा, दशलक्षण पूजा, रत्नत्रय पूजा और तत्त्वार्थ सूत्र विधान के नौवें अध्याय के 47 अर्ध का पाठन प्रमुख रूप से किया गया।
अकिंचन धर्म का महत्व – प्रवचन में आचार्य श्री
प्रवचन में आचार्य श्री ने समझाया कि अकिंचन्य धर्म आत्मा की वह अवस्था है, जहां बाहरी वस्तुओं के साथ-साथ आंतरिक संकल्प-विकल्प भी शांत हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि जैसे ऊँचे पर्वत की चोटी पर पहुंचने के लिए बोझ उतारना आवश्यक होता है, उसी प्रकार मोक्षमार्ग की ऊँचाइयों तक पहुंचने के लिए अकिंचन भाव अपनाना जरूरी है।
महाराज श्री ने बताया कि परिग्रह का त्याग कर आत्मा को केंद्रित करना ही अकिंचन धर्म की सार्थकता है। उन्होंने समझाया कि भीड़ में अशांति रहती है, लेकिन एकत्व और एकाकी भाव में आत्मा को शांति और स्थिरता मिलती है।
जैन समाज की बड़ी सहभागिता
इस अवसर पर अनेक श्रद्धालु और जैन समाज के सदस्य उपस्थित रहे। इनमें प्रमुख रूप से मुकेश जैन, रविंद्र जैन, अनुज जैन, अंकित जैन, प्रतीक जैन, शशांक जैन, विपुल जैन, सतीश जैन, विनय जैन, शुभम जैन, पारुल जैन, अंजू जैन, सुमन जैन, अर्चना जैन, आदिति जैन, आस्था जैन, शशि जैन, नेहा जैन, सुनीता जैन, अक्षय जैन आदि शामिल रहे।