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मंगल पर जीवन की तलाश में उतरा नासा का रोवर

छह पहिए वाला यह उपकरण मंगल ग्रह पर उतरकर जानकारी जुटाएगा और चट्घ्टानों के नमूने भी लेकर आएगा, जिनसे इन सवालों का जवाब मिल सकता है कि क्या कभी लाल ग्रह पर जीवन था।

मंगल पर जीवन की तलाश में उतरा नासा का रोवर
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नई दिल्ली । अंतरिक्ष में एक और बडी पहल के साथ नासा का पर्सिवियरेंस मार्स रोवर देर रात को मंगल पर जीवन की तलाश के लिए उतर गया।

सूत्रों के अनुसार अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के पर्सिवियरेंस एयरक्राफ्ट ने गुरुवार देर रात करीब ढाई बजे मार्स (मंगल) की सबसे खतरनाक सतह जेजेरो क्रेटर पर लैंड किया। बताया जाता है कि इस सतह पर कभी पानी हुआ करता था। नासा ने दावा किया है कि यह अब तक के इतिहास में रोवर की मार्स पर सबसे सटीक लैंडिंग है। पर्सिवियरेंस रोवर के लाल ग्रह यानी मार्स की सतह पर लैंड करने के तुरंत बाद नासा ने इसकी पहली तस्वीर जारी की। माना जा रहा है कि नासा के इस मिशन से मंगल ग्रह के बारे में दुनिया को बड़ी जानकारी मिलेगी। नासा ने कुछ फोटो और वीडियो भी ट्वीट किए हैं, जिसमें रोवर के लैंड करते ही वैज्ञानिक खुशी से झूमते दिख रहे हैं।

पर्सिवियरेंस रोवर 1000 किलोग्राम वजनी है। यह परमाणु ऊर्जा से चलेगा। पहली बार किसी रोवर में प्लूटोनियम को ईंधन के तौर पर उपयोग किया जा रहा है। यह रोवर मंगल ग्रह पर 10 साल तक काम करेगा। इसमें 7 फीट का रोबोटिक आर्म, 23 कैमरे और एक ड्रिल मशीन है। वहीं, हेलिकाॅप्टर का वजन 2 किलोग्राम है। पर्सिवियरेंस मार्स रोवर के मंगल ग्रह पर लैंडिंग की प्रक्रिया काफी खतरनाक थी। अपनी लैंडिंग से पहले रोवर को उस 7 मिनट के फेज से गुजरना पड़ा, जिसे टेरर आॅफ सेवन मिनट्स कहा जाता है। वहीं से रेडियो सिग्नल को पृथ्वी तक पहुंचने में 11 मिनट से अधिक समय लगे। इतना ही नहीं, इस दौरान पर्सिवियरेंस रोवर की गति 12 हजार 500 मील प्रति घंटा थी और यह रोवर हीट शील्ड से पूरी तरह सुरक्षित था।

जेजेरो क्रेटर लाल ग्रह यानी मंगल ग्रह का अत्यंत दुर्गम इलाका माना जाता है। जेजेरो क्रेटर एक तरह से गहरी घाटियां, तीखे पहाड़, नुकीले क्लिफ, रेत के टीले और पत्थरों का समूद्र है। मंगल पर पहुंचने के बाद ये उसकी सतह पर उतरने वाला 9वां होगा। एक कार के साइज का प्लूटोनियम-पार्वड रोवर मंगल पर उतरने वाला नासा का पांचवां रोवर है। 23 कैमरों वाला पर्सिवियरेंस न केवल वीडियो रिकाॅर्ड करने में सक्षम है, बल्कि ये आवाजें भी रिकाॅर्ड कर पाएगा। इसके लिए इसमें दो माइक्रोफोन लगाए गए हैं।

मंगल से पृथ्वी तक एक संकेत के आने में 11 मिनट लगते हैं। यानी जैसे ही नासा के वैज्ञानिकों को यान के मंगल के वायुमंडल में प्रवेश का संकेत मिला। तब तक रोवर मंगल की जमीन छू चुका था और ऐसा सकुशल हो चुके होने के लिए वैज्ञानिकों को अगले संकेतों का इंतजार करना पड़ा होगा। नासा के वैज्ञानिकों ने इस समय को खौफ के सात मिनट कहा है। उसके सामने कुछ चुनौतियां होंगी। छह पहिए वाला यह उपकरण मंगल ग्रह पर उतरकर जानकारी जुटाएगा और चट्घ्टानों के नमूने भी लेकर आएगा, जिनसे इन सवालों का जवाब मिल सकता है कि क्या कभी लाल ग्रह पर जीवन था। वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर कभी मंगल ग्रह पर जीवन रहा भी था तो वह तीन से चार अरब साल पहले रहा होगा, जब ग्रह पर पानी बहता था। रोवर से दर्शनशास्त्र, धर्मशास्त्र और अंतरिक्ष विज्ञान से जुड़े एक मुख्य सवाल का जवाब मिल सकता है। इस परियोजना के वैज्ञानिक केन विलिफोर्ड ने कहा, क्या हम इस विशाल ब्रह्मांड रूपी रेगिस्तान में अकेले हैं या कहीं और भी जीवन है? क्या जीवन कभी भी, कहीं भी अनुकूल परिस्थितियों की देन होता है?

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