तो अब सरकार गठन पर तालिबान के दो गुटों में जंग के हालात
तालिबान में जहां हर धड़ा अपने फायदे को लेकर लड़ रहा है, वहीं शीर्ष नेतृत्व को इस बात की चिंता सता रही है कि कहीं यह कलह सार्वजनिक न हो जाए और आपस में ही अलग-अलग धड़ों की बीच उसी तरह हिंसा न छिड़ जाए, जैसे 1990 के दशक में देखने को मिलती थी।
नई दिल्ली। अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद तालिबान द्वारा सरकार गठन की प्रक्रिया के बीच खबर है कि सरकार बनाने को लेकर तालिबान के दो धड़ों में ही फूट पड़ गई है। अफगानिस्तान में मुल्लाह हिबतुल्लाह अखुंदजादा के साथ सरकार बनाने को लेकर तालिबान नेतृत्व और हक्कानी नेटवर्क में खींचतान चल रही है।
अफगानिस्तान सेेेेेेेेेेेेेेेेेेे अमेरिका की वापसी के बाद तालिबान नेतृत्व दुनिया के सामने एकता दिखा रहा है लेकिन अब इसकी अंदरूनी कलह धीरे-धीरे सामने आ रही है। दरअसल, तालिबान की स्थापना करने वाले मुल्ला उमर के बेटे मुल्ला याकूब की चाहत है कि कैबिनेट में राजनीति से जुड़े लोगों की बजाय सेना से जुड़े लोगों को लाया जाए। वहीं, तालिबान के सह-संस्थापक नेता मुल्लाह बरादर की इच्छा ठीक इसके विपरीत है। काबुल से मिली रिपोर्ट्स से यह संकेत मिलें हैं कि मुल्लाह याकूब ने यह खुलेआम कहा है कि जो लोग दोहा में शाही तरीके से जी रहे हैं वे अमेरिकी सेना के खिलाफ देश में जिहाद करने वाले लोगों को नियम-कायदे न सिखाएं। बता दें कि मुल्लाह बरादर और शेर मोहम्मद स्तेनकजई ही दोहा से तालिबान की राजनीति का नेतृत्व करते हैं और इन दोनों ने ही अमेरिकी दूत जलमे खालीजन, पाकिस्तान और ब्रिटेन के साथ बातचीत की थी। मौजूदा समय में काबुल पर नियंत्रण रखने वाले हक्कानी आतंकी नेटवर्क और मुल्लाह याकूब के बीच तनाव साफ दिख रहा है। दरअसल, यह खींचतान गैर-पश्तून तालिबान और कंधार धड़े के बीच है, ठीक वैसे ही जैसे पश्तून और गैर-पश्तूनों के बीच फासला होता है।
तालिबान में जहां हर धड़ा अपने फायदे को लेकर लड़ रहा है, वहीं शीर्ष नेतृत्व को इस बात की चिंता सता रही है कि कहीं यह कलह सार्वजनिक न हो जाए और आपस में ही अलग-अलग धड़ों की बीच उसी तरह हिंसा न छिड़ जाए, जैसे 1990 के दशक में देखने को मिलती थी। अमेरिका भले ही अफगानिस्तान को अलविदा कह चुका हो लेकिन वह अपने पीछे 8.5 करोड़ डॉलर के हथियार और गोला-बारूद छोड़ गया है, जिसके सहारे तालिबान के अलग-अलग धड़े आपस में अगले 10 सालों तक लड़ सकते हैं।