चुनाव का नाम सुनकर रो पड़ीं थी अंजू अग्रवाल
प्रथम नागरिक के दायित्व की तीसरी वर्षगांठ-संघर्ष ने एक गृहणी को बनाया आयरन लेडी, तीन साल में नगरपालिका परिषद् की चेयरपर्सन ने विपक्ष से पाई सत्ता पक्ष की ताकत, निडर-निष्पक्ष कार्यशैली अपनाकर दृढ़ता किया काम, बड़े फैसले लेेने में नहीं हटीं पीछी।
मुजफ्फरनगर। नगरपालिका परिषद् के मौजूदा निर्वाचित बोर्ड को आज तीन साल का सफर पूरा हो चुका है। इन बीते तीन साल में इस बोर्ड ने अनेक चुनौतियों, विवाद और विरोध का सामना किया, लेकिन बोर्ड की मुखिया चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल की निडर, निष्पक्ष कार्यशैली और सभी के समान विकास के उनके दृढ़ संकल्प के कारण सारे विरोध और विवाद समाप्त हो गये। चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल ने इन तीन वर्ष में विपक्ष से सत्ता पक्ष की ताकत हासिल करने का काम किया। किसी ने शायद ही यह सोचा होगा कि देहरादून की बेटी मुजफ्फरनगर के एक बड़े ओधोगिक घराने की बहु बनकर जिन पारिवारिक मूल्यों के साथ परिवार की जिम्मेदार का निर्वह कर रही है, वह शहर की प्रथम नागरिक बनने के बाद अपनी ईमानदार कार्यशैली से सभी का दिल जीतने में सफल हो पायेगी। जब अंजू अग्रवाल को उनके परिवार की ओर से चुनाव लड़ने के निर्णय की जानकारी दी गई तो वह कुछ नहीं बोेलीं, उनकी आंखों में आंसू छलक पड़े थे, इससे साफ था कि वह परिवार से इतर इस राजनीतिक दायित्व को निभाना नहीं चाहती है, लेकिन आज तीन साल जब वह चेयरपर्सन की कुर्सी पर पूरे कर चुकी हैं तो हर कोई यही कहता सुनाई देता है कि टिकट का नाम सुनकर रोने वाली इस महिला ने अच्छे-अच्छों को रूलाने का काम किया है। इसी कार्यशैली के कारण अंजू अग्रवाल को जनता के बीच आयरन लेडी का रूतबा मिला है।
नवम्बर 2017 में यूपी में निकायी चुनाव की सरगर्मी पूरे जोरों पर थी। मुजफ्फरनगर नगर पालिका परिषद् के पूर्व चेयरमैन पंकज अग्रवाल ने कांग्रेस से चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया था। कांग्रेस को उनके रूप में दमदार प्रत्याशी मिला था और पंकज की जीत से कांग्रेस को यहां पर एक राजनीतिक संजीवनी मिली। चुनाव नजदीक आया तो यहां महिला सीट होने के कारण कांग्रेस ने बिलकीस चौधरी को टिकट घोषित कर दिया था। इस पर तत्कालीन जिलाध्यक्ष नानू मियां नाराज बताये गये। नामांकन के केवल दो दिन शेष रह गये थे। इसी बीच पंकज अग्रवाल के साथ कांग्रेस नेताओं ने रातों रात भाजपा को पराजित करने के लिए ठोस रणनीति बनाई और लाला मूलचंद सर्राफ की फैमिली से कांग्रेस को फिर से एक प्रत्याशी मिला।
इस बार टिकट पंकज अग्रवाल की चाची अंजू अग्रवाल पत्नी इंजी. अशोक अग्रवाल को दिया गया। जिस समय कांग्रेस से अंजू अग्रवाल के नाम की घोषणा कराने की रणनीति बनाई गई, वह अपने घर पर नहीं थी। परिवार के लोगों के साथ अंजू अग्रवाल धार्मिक यात्रा पर गईं हुई थी। उनको फोन पर बताया गया कि आपको तुरंत घर लौटना है, आपको मुजफ्फरनगर चेयरमैन के लिए कांग्रेस से टिकट दिया गया है और चुनाव लड़ना है। इस एक फोन ने अंजू अग्रवाल को झकझोर कर रख दिया था।
अभी एक बहू के रूप में पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन करने वाली अंजू अग्रवाल चुनाव लड़ने के परिवार के फैसले को खुले मन से स्वीकार नहीं कर पाई थी। उनकी आंखों में आंसू की जलधारा फूट पड़ी और वह परिवार के फैसले पर चाहकर भी इंकार नहीं कर पाई थी। उनको लग रहा था कि परिवार का यह फैसला गलत है, वह राजनीति के काबिल नहीं है। अंजू अग्रवाल घर वापस लौटी तो अपनी बात परिवार के सामने रखी, लेकिन जब लाला मूलचंद सर्राफ ने चुनाव लड़ने के फैसले पर अंतिम मुहर लगाई तो घर की दहलीज से अंजू अग्रवाल जनता के बीच जा पहुंची।
निकाय चुनाव में भगवा आंधी के बावजूद मुजफ्फरनगर नगर पालिका की चुनावी जंग में कांग्रेस की लगातार दूसरी बार मिली जीत हैरतअंगेज रही। अंजू अग्रवाल ने भाजपा की दमदार प्रत्याशी सुधा शर्मा को पराजित कर शहर की पहली महिला चेयरमैन होने का रूतबा हासिल किया। उनके चुनाव में कांग्रेस का कोई बड़ा नेता चुनाव प्रचार में नहीं आया, जबकि सीएम योगी आदित्यनाथ ने खुद शहर में चुनावी जनसभा की थी। कांग्रेस प्रत्याशी अंजू अग्रवाल की जीत सियासी नजरिये से चैंकाने वाली रही। औद्योगिक घराने की बहू अंजू की चुनाव से पहले राजनीति में कोई पहचान नहीं थी। पालिकाध्यक्ष पद महिला के लिए आरक्षित होने की वजह से ऐसा समीकरण बना कि कांग्रेस ने भाजपा की सुधाराज शर्मा के सामने उन्हें प्रत्याशी बनाकर बड़ा दांव खेल दिया।
निवर्तमान चेयरमैन पंकज अग्रवाल ने अपनी चाची अंजू अग्रवाल के चुनाव का नेतृत्व संभाला। शहरी क्षेत्र में मुस्लिमों के बाद वैश्य मतदाताओं की तादाद सबसे ज्यादा होना भी फायदेमंद रहा। पिछले चुनाव की रणनीति का तजुर्बा पंकज अग्रवाल के काम आया। भाजपा के परंपरागत वैश्य वोट बैंक में उन्होंने असरदार सेंधमारी और मुस्लिमों के बीच पैठ की गई। रालोद छोड़कर आईं सपा प्रत्याशी पूर्व विधायक मिथलेश पाल को कमजोर प्रत्याशी मानकर मुस्लिमों ने एक बार फिर भाजपा के खिलाफ पंजे को मजबूत किया और 353 लाख की संपत्ति की मालिक सबसे उम्रदराज और शिक्षित अंजू अग्रवाल चेयरमैन बन गई।
12 दिसम्बर 2017 को टाउनहाल मैदान में तत्कालीन डीएम जीएस प्रियदर्शी ने अंजू अग्रवाल को चेयरपर्सन और बोर्ड के सदस्यों को शपथ ग्रहण कराई। उस समारोह में शामिल लोगों की अंजू को लेकर सोच यही थी कि एक महिला होने के नाते वह भी चेयरपर्सन के रूप मेें केवल रबड़ स्टाम्प की तरह ही साबित होंगी, लेकिन पहले दिन जिस दृढ़ता के साथ अंजू अग्रवाल ने शहर के विकास के लिए अपनी प्राथमिकता दिखाई वह आज तीन साल के कार्यकाल तक उसी पर कायम है।
तीन साल पहले टिकट का नाम सुनकर रो देने वाली अंजू अग्रवाल वास्तव में एक आयरन लेडी साबित हुई हैं। कांग्रेस चेयरमैन के रूप में सत्ता पक्ष के नेताओं के साथ उनका 36 का आंकडा कोई भुला नहीं पाया है। शहर में सड़कों के निर्माण की बात आई तो वह सरकार के मंत्रियों से सीधे भिड़ गई। प्रशासनिक स्तर पर अनावश्यक दबाव बना तो सिटी मजिस्ट्रेट के आचरण को लेकर खुलकर बोलीं।
— Anju Agarwal (@AnjuAgarwalMzn) October 2, 2020
एक समय ऐसा भी आया, जबकि उनके अधिकार सीज होने तक की नौबत आ गई, लेकिन हर जांच में वह निडरता से सामने आयी और सभी जांच धरी रह गयी। अंततः सत्ता से लड़ते लड़ते शहर के विकास के हित में वह खुद भी सत्ता पक्ष की कतार में खड़ी हो गयी। इसके बाद भी उन्होंने सबका साथ, सबका विकास की नीति से पीछे नहीं हटने के अपने दृढ़ संकल्प पर कायम रहकर दिखाया। भाजपा में उनकी ज्वाइनिंग भी ऐतिहासिक रही और भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने माना था कि उनके आने से पार्टी मजबूत होगी। उन्होंने शहर के लिए कई बड़े फैसले लिये लेकिन अंग्रेजीकाल की पीस लाइब्रेरी भवन को धराशायी करने के अपने निर्णय के लिए वह हमेशा याद की जाती रहेंगी।