undefined

‘चांदी की कुर्सी’ पर विराजेंगी नई चेयरपर्सन

पूर्व चेयरमैन अंजू अग्रवाल की नीति के कारण पहली बार नगरपालिका परिषद् में नये बोर्ड को मिलेगा भरपूर पैसा, अब तक के लगभग सभी चेयरमैनों को कुर्सी संभालने पर कर्जदार मिली पालिका, सुभाष चंद शर्मा के कार्यकाल में पालिका के कर्मियों को नहीं मिल पाता था वेतन, नगर पालिका को लाभ में छोड़कर गये थे कांग्रेसी चेयरमैन पंकज अग्रवाल, अंजू अग्रवाल को 16 करोड़ के बड़े कर्ज के बोझ तले दबी मिली थी पालिका।

‘चांदी की कुर्सी’ पर विराजेंगी नई चेयरपर्सन
X

मुजफ्फरनगर। नगरपालिका परिषद् में बोर्ड अध्यक्ष पद की कुर्सी को कांटों भरा ताज माना जा रहा है। सिटी बोर्ड के चेयरमेन विद्या भूषण के कार्यकाल के बाद से लगातार निर्वाचित होने वाले चेयरमैनों के लिए पालिका अध्यक्ष पद की कुर्सी कांटों भरा ताज ही साबित हुई है। उनके बाद से अंजू अग्रवाल तक इस कुर्सी को संभालने वाले अध्यक्ष को कार्यकाल पूर्ण होने से पहले ही कुर्सी छोड़ने के लिए विवश होना पड़ा। हालांकि सभी चेयरमैन कोर्ट के सहारे फिर से कुर्सी पर काबिज जरूर हुए, लेकिन उनके कार्यकाल के बाद जो भी नया चेयरमैन बोर्ड में निर्वाचित हुआ, उसको पालिका की आर्थिक स्थिति और हालात दयनीय ही मिले हैं। नये चेयरमैन को शहर के विकास की प्यास को बुझाने के लिए पालिका के अर्थ तंत्र की जमीन पर खुद ही कुआं खोदना पड़ा और आर्थिक संसाधन रूपी पानी निकालकर आगे बढ़ने का रास्ता तय करना पड़ा। पहली बार है कि इस सीमा विस्तारित पालिका में निर्वाचित होने वाली नई चेयरपर्सन को ‘चांदी की कुर्सी’ मिलने जा रही है। 13 मई के बाद जो भी चेयरपर्सन बनेंगी, वो आर्थिक रूप से मजबूत पालिका को संभालने वाली साबित होगी। पालिका के अर्थ तंत्र को मजबूत बनाने में पूर्व चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल की नीतियों को भी बड़ा कारण बना जा रहा है। इसी कारण नये बोर्ड को विकास के लिए पालिका के खजाने में भरपूर पैसा मिलने जा रहा है, लेकिन सीमा विस्तार के कारण बोर्ड के समक्ष चुनौतियां भी कम नहीं हैं।

पालिका के इतिहास की बात करें तो बोर्ड का कार्यकाल पूर्ण होते होते पालिका का खजाना शून्य हो जाता रहा है। भले ही अपने कार्यकाल में पालिका की आय बढ़ाने के लिए समय समय पर बोर्ड के अध्यक्षों द्वारा आर्थिक रूप से कई बड़े निर्णय लिये गये हों और पालिका के खजाने को भरने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी, लेकिन नये निर्वाचित होने वाले बोर्ड को पालिका का खजाना खाली ही मिला है। यही कारण है कि पालिका में निर्वाचित होने वाले कमोबेश सभी बोर्ड को विकास की प्यास बुझाने के लिए खुद ही कुआं खोदकर आवश्यकता अनुसार पानी निकाला गया है। पिछले अनुभव की बात करें तो पालिका में वर्ष 1995 में जनता के वोट द्वारा निर्वाचित होने वाले पहली चेयरमैन और पहले भाजपाई अध्यक्ष डाॅ. सुभाष चन्द शर्मा को जब कुर्सी सौपी गयी तो पालिका पांच करोड़ रुपये के कर्ज में उनको मिली थी, उनके कार्यकाल के शुरूआती दिनों में आलम यह था कि पालिका के कर्मचारियों का वेतन निकाल पाना भी महाभारत बन जाता था। कर्मचारियों को कई कई माह तक वेतन ही नहीं मिल पा रहा था। डाॅ. सुभाष चंद शर्मा ने आर्थिक रूप से कमजोर और कर्जदार पालिका की आय बढ़ाने के लिए अनेक कदम उठाये और नतीजा यह हुआ कि पांच साल में कर्मचारियों के वेतन की व्यवस्था पटरी पर लौटी और पालिका में कई संसाधन भी उपलब्ध हो पाये। डाॅ. सुभाष के बाद जगदीश भाटिया को भी पालिका कर्ज में मिली तो भाजपा के तीसरे चेरयमैन कपिल देव अग्रवाल ने जब बोर्ड अध्यक्ष पद की कुर्सी संभाली तो उनको भी खजाना खाली ही मिला। इसके बाद पालिका में पंकज अग्रवाल चेयरमैन बने और कांग्रेस राज स्थापित हुआ। पंकज अग्रवाल के सामने भी पालिका की अर्थ व्यवस्था को मजबूत करने और पालिका पर कायम देनदारी को दूर कर लाभ में पहुंचाने की चुनौती थी। उन्होंने विकास के नये आयाम स्थापित किये और जब कार्यकाल पूर्ण किया तो पालिका को लाभ की स्थिति में छोड़ा था। कार्यकाल पूर्ण होने पर प्रशासक राज आने के कारण पालिका में उपलब्ध धन को दमादम खर्च किया गया और 2017 में जब दिसम्बर में नया बोर्ड निर्वाचित हुआ और कांग्रेस के दूसरे चेयरमैन के रूप में अंजू अग्रवाल ने कार्यभार संभाला तो उनको भी पालिका अपनी पुरानी परम्परा के अनुसार कर्जदार ही मिली, लेकिन अंजू अग्रवाल के कार्यकाल में पालिका की आय में हुई ऐतिहासिक वृ(ि का ही नतीजा रहा है कि अब आने वाली नई पालिका चेयरपर्सन को खजाना खाली नहीं बल्कि लबालब भरा मिलेगा। यह पहली बार है कि पालिका में निर्वाचित नये बोर्ड को विकास कार्यों के लिए आर्थिक संकट का सामना नहीं करना पड़ेगा।

इसका एक बड़ा कारण यह भी माना जा रहा है कि पालिका में अंजू अग्रवाल पर लगे आरोपों के चलते मची राजनीतिक खींचतान में कोर्ट और शासन की व्यवस्था के तहत करीब नौ माह से पालिका में कोई भी काम पटरी पर नहीं लौट पाया है। अंजू अग्रवाल के खिलाफ चल रही जांच को आधार बनाकर शासन ने 20 जुलाई 2022 को उनके अधिकारी सीज कर दिये थे, इसके बाद कानूनी लड़ाई लम्बी चली और कोर्ट से अधिकार बहाल होने के बावजूद भी राजनीतिक खींचतान में अंजू अग्रवाल को काम नहीं करने दिया गया। उनका कार्यकाल समाप्त हुआ तो कोर्ट के आदेशों से बंधे शासन के द्वारा डीएम की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी का गठन करना पड़ा और कमेटी बनने के कारण कोई भी कामकाज पटरी पर नहीं लौट पाया। इस कारण खजाने में पैसा जस का तस पड़ा रहा। अब पहली बार पालिका का नया बोर्ड मालामाल नजर आ रहा है।

नये चेयरमैन को मिलेगी सौ करोड़ की चाबी, खर्च से पहले होगी बजट बैठक

मुजफ्फरनगर। नगरपालिका परिषद् की नई चेयरपर्सन लवली शर्मा होंगी या फिर भाजपा की मीनाक्षी स्वरूप इस कुर्सी पर विराजमान होकर स्वरूप परिवार का शहरी सियासत में चल रहा सूखापन खत्म कर पायेंगी, यह तो 13 मई के दिन होने वाली मतगणना के साथ ही साफ हो पायेगा, लेकिन इतना तय है कि जो भी नई चेयरपर्सन होंगी, वो शपथ ग्रहण करने के साथ ही करीब सौ करोड़ रुपये के खजाने की चाबी की मालिक बन जायेंगी। पालिका सूत्रों के अनुसार पालिका के खजाने में वर्तमान में करीब सौ करोड़ रुपये का फण्ड है। इसको खर्च करने का काम नया बोर्ड बन जाने के बाद से ही शुरू होगा। सीधी बात है कि इस खजाने की मालकिन नई चेयरपर्सन ही होंगी, लेकिन इस खजाने को खर्च करने से पहले नई चेयरपर्सन को सबसे पहले वित्तीय वर्ष 2023-24 की बजट बैठक बुलाने का काम करना होगा। इस बार पालिका में 200 करोड़ रुपये से ज्यादा के बजट के आने की संभावना है। इसके लिए विभागीय स्तर पर तैयारी की जा रही हैं। बजट बैठक पास होने के बाद ही खजाने के खर्च के लिए हरी झण्डी मिल पायेगी। ऐसे में यदि विपक्ष से चेयरपर्सन होंगी तो बहुमत जुटाना सबसे बड़ी और पहली चुनौती बनेंगी।


हमने गरीब पालिका को संभाला और खजाना भरकर दियाः अंजू अग्रवाल

मुजफ्फरनगर। पालिका की पूर्व चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल ने कहा कि उनके भतीजे पंकज अग्रवाल ने पालिका को लाभ में पहुंचाया और लाभ में ही छोड़ा था, लेकिन प्रशासक नियुक्त होने के कारण खजाना खाली कर दिया गया। जब उन्होंने पालिका को बोर्ड अध्यक्ष के रूप में संभाला तो पालिका 16 करोड़ रुपये के कर्ज में उनको मिली थी। उस समय वो इस स्थिति में भी नहीं थी कि कहीं पर नाली का एक चैनल तक भी लगवा सकें। हम मिलकर ईमानदार सोच से आगे बढ़े और शहर के विकास, जनता के हित को साधने के लिए अर्थ तंत्र को मजबूत बनाने के लिए कई बड़े फैसले लिये। पालिका का खर्च कम करने को नई तकनीक का उपयोग किया गया और इसका नतीजा यह हुआ कि जब पालिका को छोड़ा तो पालिका के खजाने में बोर्ड फण्ड व अन्य स्रोत से करीब 76 करोड़ रुपये शेष थे। वर्तमान में यह फण्ड करीब सौ करोड़ रुपये हो चुका है। ऐसे में नये चेयरमैन को आर्थिक संकट परेशान नहीं करेगा और उनके पास विकास के लिए भरपूर पैसा होगा। उन्होंने कहा कि पालिका स्वायत्त संस्था हैं, ऐसे में इसको स्वतंत्र रखा जाना जरूरी है, तभी शहरों का विकास संभव हो सकेगा। उन्होंने कहा कि उनको अफसोस है कि आखिरी महीनों में वो शहर के विकास के लिए अपने प्लान को लागू नहीं कर सकीं, राजनीतिक खींचतान में उनको काम नहीं करने दिया गया। उनको गरीब पालिका मिली थी, लेकिन उसको उन्होंने रिच पालिका बनाया है। जनता ने पैसे की रखवाली की और आज विकास के लिए भरपूर पैसा नये बोर्ड को मिलेगा।

Next Story