चारों वेदों के ज्ञाता मौलाना शाहीन जमाली चतुर्वेदी का इंतकाल
जिसके दिल में अल्लाह के कलाम कुरान के साथ हिन्दू धर्म के प्रमुख ग्रन्थ चारों वेद महफूज रहे, तिरंगा जिसके गले का हार बना रहा, जो गंगा जमुनी तहजीब को परवान चढ़ाते हुए इंसानियत के लिए जिये वह शख्सियत मौलाना महफूजुर्रहमान शाहीन जमाली चतुर्वेदी ने आखिरकार कोरोना संक्रमण के खिलाफ जिन्दगी जंग में हार स्वीकार कर ली। अस्पताल में उपचार के दौरान मौलाना शाहीन जमाली की मौत हो जाने पर देशभर में शोक नजर आया।
मुजफ्फरनगर। जिसके दिल में अल्लाह के कलाम कुरान के साथ हिन्दू धर्म के प्रमुख ग्रन्थ चारों वेद महफूज रहे, तिरंगा जिसके गले का हार बना रहा, जो गंगा जमुनी तहजीब को परवान चढ़ाते हुए इंसानियत के लिए जिये वह शख्सियत मौलाना महफूजुर्रहमान शाहीन जमाली चतुर्वेदी ने आखिरकार कोरोना संक्रमण के खिलाफ जिन्दगी जंग में हार स्वीकार कर ली। अस्पताल में उपचार के दौरान मौलाना शाहीन जमाली की मौत हो जाने पर देशभर में शोक नजर आया।
मेरठ के मशहूर मौलाना शाहीन जमाली चतुर्वेदी साहब का इंतकाल हो गया। मौलाना साहब को मौलाना चतुर्वेदी के नाम से ज्यादा जाना जाता था। वह चार वेदों के ज्ञाता थे। 4 मई को कोरोना संक्रमित होने के बाद उनको उपचार के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां आज दोपहर उपचार के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया। मेरठ में सदर बाजार स्थित मदरसा इमदादुल इस्लाम के संचालक मौलाना शाहीन जमाली के इंतकाल की खबर से शोक की लहर नजर आयी। वे काफी लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उनका आनंद अस्पताल में उपचार चल रहा था। उन्हें उर्दू और अरबी भाषाओं के साथ संस्कृत भाषा का भी अच्छा ज्ञान था। वे मंत्रोच्चारण के साथ स्वतंत्रता व गणतंत्र दिवस पर कई बार अपने मशहूर मदरसे में ध्वजारोहण भी कर चुके थे।
चारों वेदों का ज्ञान रखने वाले मौलाना शाहीन जमाली को देश में मौलाना चतुर्वेदी के नाम से पहचाना जाता था। वे इस्लाम को लेकर कई किताबें लिख चुके थे। कोरोना के दौरान लाकडाउन में भी किताबें लिखने में मशरूफ रहे। वे सदर बाजार क्षेत्र में हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल थे। हिंदू बाहुल्य क्षेत्र के बीच मदरसा चला रहे थे। इस्लाम के एक बड़े आलिमों में उनकी गिनती होती थी। आज जब यूपी में नूरपुर गांव से पलायन का शोर मचा हुआ है, ऐसे में मौलाना शाहीन जमाली का जीवन आपसी भाईचारे को ठेस पहुंचाने वाले लोगों को एक अच्छा सबक साबित हो सकता है। मौलाना शाहीन जमाली का जीवन देश और समाज के लिए समर्पित रहा, वह ऐसे इंसान थे, जो सांप्रदायिक सौहार्द और भाईचारा कायम करने में व्यस्त रहे। उनके मजहबी ज्ञान में गंगा जैसी निर्मलता और धर्मनिरपेक्षता का संगम शामिल रहा तो यमुना जैसी गहराई भी थी। कुछ ऐसे ही किरदार के मालिक मौलाना महफूजुर्रहमान शाहीन जमाली 'चतुर्वेदी', कुरान और वेदों का संगम कर इंसानियत का पैगाम देकर अलविदा हो गये।
मौलाना महफूजुर्रहमान शाहीन जमाली चतुर्वेदी (शैखुल हदीस) ने न सिर्फ मदरसा दारुल उलूम देवबंद से इस्लामिक शिक्षा की उच्च डिग्री 'आलिम' हासिल की है, बल्कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से संस्कृत से एमए (आचार्य) भी किया है। चारों वेदों का अध्ययन करने पर उन्हें चतुर्वेदी की उपाधि मिली। मौलाना जमाली सदर बाजार स्थित 130 साल पुराने मदरसा इमदादउल इस्लाम के प्रधानाचार्य रहे।
मौलाना चतुर्वेदी ने प्रो. पंडित बशीरुद्दीन से संस्कृत की शिक्षा हासिल करने के बाद एएमयू से एमए (संस्कृत) किया था। अपने उप नाम (चतुर्वेदी) की तरह बशीरुद्दीन के आगे पंडित लिखे जाने के बारे में वह बताते थे कि उन्हें संस्कृत का विद्वान होने के चलते पंडित की उपाधि देश के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने दी थी। उन्होंने चारों वेदों का अध्ययन किया तो उन्हें भी चतुर्वेदी कहा जाने लगा। मौलाना चतुर्वेदी ने के मदरसे में देश के विभिन्न राज्यों के 200 से ज्यादा छात्र हैं। छात्रों को अरबी, फारसी, हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू की तालीम दी जाती है। यहां हाफिज, कारी और आलिम की डिग्री मिलती है। यहां पर मौलाना शाहीन जमाली मदरसे के छात्रों को इस्लाम के साथ हिंदू दर्शन के बारे में भी जानकारी देतेे रहे।
मौलाना चतुर्वेदी देश के विभिन्न शहरों में होने वाले सर्वधर्म-संस्कृति सम्मेलनों में हिस्सा लेते रहते थे। देश का ऐसा कोई राज्य नहीं, जहां वह न गए हों। देश प्रेम, सांप्रदायिक सौहार्द और आपसी भाईचारा कायम करने के लिए वह सभी धार्मिक मंचों पर जाते रहते थे। मौलाना चतुर्वेदी ने कुरान शरीफ की विशेष इल्मों पर पीएचडी की। 40 साल तक देवबंद के एक समाचार पत्र में चीफ एडिटर रहे और इसे चलाया। धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक विषयों पर एक दर्जन से ज्यादा पुस्तकें लिख चुके हैं। इन किताबों के सहारे उन्होंने खासतौर पर इस्लाम और हिंदू धर्म के बीच गलत फहमियों को दूर करने का प्रयास किया है।
मौलाना चतुर्वेदी अक्सर कहा करते थे कि सियासत के चलते ही नेता हिंदू-मुस्लिम एकता को नुकसान पहुंचाने का काम करते हैं। देश किसी भी धर्म के भड़काऊ नारों से नहीं, बल्कि देश भक्ति की भावना से आगे बढ़ता है। पाकिस्तान बनने पर ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह (अल्लाह के सिवा कोई माअबूद नहीं है। मोहम्मद अल्लाह के रसूल हैं) का नारा लगाया गया था। अब पाकिस्तान का क्या हश्र है, यह सभी देख रहे हैं। देश दो चीजों से आगे बढ़ता है, एक देश प्रेम की भावना और देश वासियों से प्रेम की धारणा। सिर्फ नारों में उलझकर आपस में लड़ना देश से सच्ची मोहब्बत नहीं है। उनके जाने के बाद उनकी सही सीख देश में आपसी भाईचारे की नींव को मजबूत बना सकती है।