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जिन राज्यों में भाजपा को धक्का लगा है, उन राज्यों में जनाधार वापस लाना बड़ी चुनौती होगी–अशोक बालियान

जिन राज्यों में भाजपा को धक्का लगा है, उन राज्यों में जनाधार वापस लाना बड़ी चुनौती होगी–अशोक बालियान
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जिन राज्यों में भाजपा को धक्का लगा है, उन राज्यों में जनाधार वापस लाना बड़ी चुनौती होगी, क्योकि भाजपा का बहुमत से पीछे रह जाना बहुत बड़ा आघात है। हालांकि विपक्ष के दुष्प्रचार के बाबजूद भी विपक्ष को भी अपेक्षित समर्थन नही मिला है। सपा-कांग्रेस गठबंधन ने अपने प्रचार अभियान में मानसिक भय (फियर साइकोसिस) के इर्द-गिर्द एक मेटानैरेटिव खड़ा किया और मतदाताओं को प्रभावित करने का प्रयास किया। विपक्ष द्वारा कहा गया कि अगर भाजपा की जीत होती है, तो संविधान बदल दिया जायेगा, आरक्षण में कटौती कर दी जायेगी। भाजपा इस असत्य नैरेटिव का उचित समय पर करार प्रतिकार नहीं कर सकी, जबकि भाजपा में पिछले दो लोकसभा चुनावों में विपक्ष के अनेकों असत्य नैरेटिव का जोरदार प्रतिकार किया था। उस समय आरआरएस (संघ) ने भाजपा के विरुद्ध इस तरह के असत्य नैरेटिव का करारा प्रतिकार किया था, लेकिन इसबार आरआरएस की सक्रिय भूमिका देखने को नहीं मिली है। मुस्लिम वोट के कुछ प्रतिशत मिलने की उम्मीद में हिंदुत्व का मुद्दा भी इसबार भाजपा ने नहीं रखा,इससे भी उसको नुक़सान हुआ। मुस्लिम वोटर ने भाजपा सरकार में मिल रही व्यापक सुविधाओं व देश में हो रहे विकास को प्राथमिकता न देकर भाजपा को हराने के लिए सपा-कांग्रेस सहित 37 पार्टियों के इंडिया गठबंधन को ही वोट किया है।

भाजपा सरकार पर लगातार ये आरोप लग रहे हैं कि वे नौकरी नहीं दे पा रहे हैं। पेपर लीक हो जाता है। बहुत सारे युवा वर्षों से प्रतियोगीता परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन अब उनकी उम्र निकल रही है। वे परीक्षा नहीं दे पा रहे हैं। युवाओं में यह एक बड़ा मुद्दा था। इसी वजह से जमीन पर भारी संख्या में युवा भाजपा से काफी नाराज दिखे। मतों में भी यह बात झलक कर आ रही है। तहसील स्तर पर भ्रष्टाचार के कारण भाजपा कार्यकर्ता आम व्यक्ति की मदद करने में अपने आप को असहाय महसूस कर रहे थे, इससे वह अपने मतदाताओं से दूर होते चले गए। उत्तरप्रदेश में आवारा पशु भी एक मुद्दा बना हुआ है।

भाजपा एक विचारधारा वाली पार्टी है,उसके कार्यकर्ता व् समर्थक पार्टी की विचारधारा के आधार पर त्याग की भावना से काम करते है, लेकिन जब उनकी सरकार में उनके मंत्री, सांसद, विधायक व् उनके नेता अपने कार्यकर्ताओं की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरते व् उनका व्यवहार कार्यकर्ताओं के प्रति सम्मानजनक नहीं होता, तो उन्हें धक्का लगता है। इसबार के लोकसभा चुनाव में भाजपा नेताओं, कार्यकर्ताओं व् प्रतिबद्ध समर्थकों का एक वर्ग इन्ही कारणों से असंतुष्ट था। वर्ष 2014 के बाद यह पहला चुनाव था, जिसमें भाजपा कार्यकर्ताओं में हद दर्जे की मायूसी दिखाई दी और कार्यकर्ताओं ने वोटरों को घरों से निकालने में कोई दिलचस्पी दिखाई नहीं दी।

भाजपा के आम कार्यकर्ता को उनके अनुरूप पार्टी में अधिक भूमिका मिलने का आभाव रहा व् बहार से आये नेताओं को अधिक महत्व दिया गया, इससे भाजपा के आम कार्यकर्ताओं में उदासीनता रही।जिन राज्यों में भाजपा के संगठन व् आरआरएस ने योजना बनाकर कार्यकर्ताओं को साथ लेकर चुनाव में कार्य किया, वहां भाजपा को लाभ भी मिला है, जैसे हिमाचल प्रदेश। भाजपा से इस बार कुछ सीटों पर उम्मीदवारों के जातीय समीकरण तय करने में चुक भी हुई है। सीटों के लिहाज से दूसरा चरण भाजपा के लिए बेहतर रहा और इसमें पार्टी ने सभी आठ सीटें जीती है।जबकि अंतिम तीन चरण में भाजपा को भरी नुकसान हुआ है। भाजपा ने इसबार 441 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे और उसके 240 उम्मीदवार जितने में कामयाब रहे। देश के 9 राज्यों में भाजपा व् 12 राज्यों में कांग्रेस को कोई उम्मीदवार चुनाव नहीं जीता है। इस चुनाव में भाजपा के एनडीए एलाइंस को 293 का स्पष्ट बहुमत है क्योकि देश की 543 लोकसभा सीटों में बहुमत के लिए 272 सीटें चाहिए, लेकिन भाजपा अकेले सरकार बनाने के लिए जरुरी सीटों के आंकड़ों को नहीं छू पाई है। विपक्षी गठबंधन को 234 सीटें मिली है।

मुफ्त अनाज योजना सहित केंद्र की अन्य योजनाओं से मतदाता जरूर प्रभावित थे, लेकिन कांग्रेस ने पांच की बजाय 10 किलो अनाज मुफ्त में देने की घोषणा कर भाजपा को पीछे ढकेल दिया था। उत्तरप्रदेश में जहाँ पर बसपा के उम्मीदवार अति पिछड़ी जाति के थे, वहां हिन्दुओं में भाजपा के कोर वोटर अपनी जाति के उम्मीदवार के पक्ष में चले गए, जिस कारण भाजपा को अनेकों सीटों का नुकसान हुआ है जैसे मुज़फ्फरनगर में डॉ संजीव बालियान की हार का मुख्य कारण यही रहा है। इसप्रकार मायावती ने ऐसे कैंडिटेट उतारे, जिन्‍होंने सपा-कांग्रेस गठबंधन के लिए फायदे का काम किया। हालांकि बसपा को इससे नुकसान हुआ है और उसका खाता तक नहीं खुला है। बसपा अपने इतिहास के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है।

भाजपा को सबसे अधिक झटका उत्तर प्रदेश में लगा है। उत्तर प्रदेश में भाजपा की हार के कुछ कारण कारण स्थानीय भी है। कुछ सीटों पर पार्टी के विधायक और स्थानीय संगठन ही पार्टी प्रत्याशी को निपटाने में लगे रहे। भाजपा ने उत्तरप्रदेश में राजपूत समाज से 13 उम्मीदवारों को टिकट दिया था, लेकिन राजपूत समाज ने राजपूत स्वाभिमान के नाम पर पंचायतें कर अपने ही समाज का अधिक नुकसान किया है, जिस कारण भाजपा से केवल 8 राजपूत उम्मीदवार ही चुनाव जीत पाए है। इन जातीय पंचायतों को कहीं से संजीवनी मिल रही थी, जिन्हें भाजपा समझ नहीं सकी। उत्तर प्रदेश के अलावा पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में भाजपा को निश्चित रूप से झटका लगा है। इन राज्यों के परिणामों के अलग-अलग कारण हैं, जिनकी अलग से व्याख्या की जा सकती है।

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