WOMENS DAY--चुनौतियों को स्वीकार कर डॉ. प्रज्ञा सिंह ने खोले बंद रास्ते
नगरपालिका की पहली महिला ईओ के रूप में मुजफ्फरनगर शहर को दी नई पहचान, मासूम बेटी की परवरिश जिम्मेदारी के साथ सेवा के प्रति दिखाया समर्पण

मुजफ्फरनगर। आज शनिवार का दिन महिलाओं का दिन है। पूरी दुनिया के साथ देश और प्रदेश यहां तक की अपने जनपद मुजफ्फरनगर में भी महिलाओं के स्वावलंबन, ड्यूटी के प्रति समर्पण और परिवार के लिए संघर्ष की बात हो रही है। मुजफ्फरनगर जनपद की बात करें तो यहां पर वर्तमान में घर परिवार, समाज और सेवा के क्षेत्र में महिलाओं ने चुनौतियों को स्वीकार करते हुए नये आयाम स्थापित किये हैं। सरकार सेवा के क्षेत्र से जुड़ी ऐसी ही महिलाओं में नगरपालिका परिषद् की पहली महिला अधिशासी अधिकारी डॉ. प्रज्ञा सिंह का भी नाम शामिल हैं। हाल ही में उन्होंने इस पद पर एक वर्ष का सेवाकाल सफलता पूर्वक पूर्ण किया, लेकिन यह एक साल उनके लिए कांटों के ताज के समान रहा। मासूम बेटी की परवरिश की जिम्मेदारी और सेवा के दायित्व के बीच वो कई चुनौतियों से लड़ी, लेकिन विचलित न होकर उन्होंने सेवा के दायित्व के प्रति समर्पण साबित कर बंद रास्तों को खोलने का काम कर दिखाया।
डॉ. प्रज्ञा सिंह के लिए मुजफ्फरनगर में ईओ के पद पर सेवा दायित्व को निभाना किसी चुनौती से कम नहीं रहा है। तबादला हुआ तो वो यहां आने की इच्छुक नहीं रही, इसकी बड़ी वजह उस समय उनकी आठ माह की बेटी पृशा उर्फ किट्टो की परवरिश की चिंता रही। तबादले के बाद वो मेडिकल लीव पर चली गई और 15 दिन की जद्दोजहद के बाद आखिरकार उन्होंने इस चुनौती का स्वीकार किया। 16 फरवरी को वो अपने पति पवन सिंह जोकि कानपुर जनपद में जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं के साथ मुजफ्फरनगर पहुंची और नगरपालिका की पहली महिला ईओ के रूप में कार्यभार ग्रहण किया।
उसी दिन पालिका ने शहर की सफाई व्यवस्था के लिए एमआईटूसी कंपनी के साथ डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन कार्य का शुभारंभ किया। पहले ही दिन से ईओ के रूप में डॉ. प्रज्ञा सिंह ने साहसिक निर्णय लेने शुरू किये और चार्ज के मात्र दस दिन में ही जिला अस्पताल के बाहर गन्दगी की पहचान बने कूड़ा डलावघर को बंद कराकर साबित कर दिया कि निर्णय लेने में वो कोई समझौता नहीं करेंगी। लीगेसी वेस्ट निस्तारण, वेस्ट टू एनर्जी प्लांट और एमआरएफ सेंटर निर्माण और स्वच्छता सर्वेक्षण में पिछड़ेपन की चुनौती उनको प्रमुख रूप से मिली थी। डॉ. प्रज्ञा ने उनको न केवल स्वीकार किया, बल्कि इनको धरातल पर लाने के लिए बंद रास्तों को खोलकर एक स्मूथ वे बनाने का काम किया। उन्होंने इस एक साल में एमआरएफ सेंटर, वेस्ट टू एनर्जी, लीगेसी वेस्ट सॉल्यूशन, नाइट स्वीपिंग, सफाई के लिए क्यूआरटी, वेस्ट टू वंडर पार्क, पिंक शौचालय जैसे वो आयाम स्थापित करने में सफलता ही नहीं पाई, इनको एक नजीर बनाने का काम किया। हालांकि इस बीच उनको काम करने के लिए चुनावी दौर के कारण समय केवल 7 माह का ही मिला, लेकिन इसमें पालिका ने जो उपलब्धियां हासिल की और दशकों से लंबित कार्यों को पूर्ण कराने में सफलता मिली, उसके पीछे उनके दृढ़ निर्णय और दायित्व के प्रति समर्पण ही मुख्य कारण माना जाता है। आज पालिका कूड़े से कमाई कर रही है तो आय में बढ़ोतरी से छवि भी निखरी और नगरोदय होना प्रारम्भ हुआ।
कम समय में पालिका को यहां तक पहुंचाना उनके लिए आसान नहीं रहा, वो परिवारिक दायित्वों को निभाने में बेटी के लगातार बिगड़ते स्वास्थ्य की समस्या से भी खूब जूझती रहीं। बेटी पृशा की तबियत बिगड़ी, तो उनके पति पवन सिंह उनके साथ खड़े नजर आये, इसके लिए उनको लोकसभा चुनाव की ड्यूटी छोड़कर आना पड़ा। डॉ. प्रज्ञा ने बेटी की परवरिश के लिए काम और घर परिवार के बीच एक सामंजस्य बैठाया और सर्दियों में शुरू की गई नाइट स्वीपिंग की अनूठी पहल के दौरान मासूम बेटी के साथ सड़कों पर उतरी नजर आई। अक्सर वो कार्यालय में भी बेटी के साथ कामकाज करती नजर आई। इस बीच उनको लेकर पालिका में बड़े स्तर पर राजनीति भी की गई, लेकिन राजनीतिक शास्त्र में मास्टर प्रज्ञा ने झुकने के बजाये लड़कर दिखाया और इस सेवाकाल में पालिका को कई उपलब्धियों तक पहुंचाकर साबित किया कि ‘जहां चाह, वहां राह’ है।
इन उपलब्धियों को लेकर ईओ पालिका डॉ. प्रज्ञा सिंह कहती हैं कि यह सफर आसान नहीं था, जब मुजफ्फरनगर तबादला हुआ तो बेटी पृशा को लेकर चिंता हुई, लखनऊ में पूरा परिवार देखभाल के लिए था, यहां उनको अकेले नौकरी और बेटी को साथ लेकर चलना था। ऐसे में असमंजस बना तो चुनौतियों का स्वीकार कर आगे बढ़ने की प्रेरणा उनको उनकी माता से मिली, साथ ही यहां कार्य के दौरान बनी समस्याओं से निपटने में उनको पति पवन सिंह और परिवार का भी पूरा सहयोग मिला। जो कुछ उपलब्धि बनी, वो इसलिए भी कर पाई कि उनको सर्विस के दौरान चेयरपर्सन मीनाक्षी स्वरूप के साथ ही अधिकारी वर्ग से भी सकारात्मक मार्गदर्शन मिला और इसी कारण वो निर्णय लेकर आगे बढ़ने में सफल रहीं। महिला दिवस पर वो यहीं संदेश देती हैं कि महिलाएं चाहे वो घर की दहलीज की जिम्मेदारियों से बंधी हों या फिर सर्विस के दायित्व से जुड़ी हों, खुद को पहचानें और आगे बढ़ें।
राजनीति में मास्टर और फिलोसफर, कुछ ऐसा है डॉ. प्रज्ञा का जीवन दर्शन
मुजफ्फरनगर। डॉ. प्रज्ञा सिंह मूल रूप से उत्तर प्रदेश के जनपद आजमगढ़ निवासी हैं और राम नगरी अयोध्या में उनकी ससुराल है। वर्तमान में उनके पिता और भाई परिवार सहित लखनऊ में रह रहे हैं। उन्होंने राजनीति शास्त्र से एमए के बाद पीएचडी की। डॉक्टरेट की उपाधि हासिल करने के उपरांत उन्होंने सरकारी सेवा के लिए प्रयास किया और 2015 में नायब तहसीलदार के पद पर बाराबंकी में ज्वाइनिंग की थी। चार माह की पोस्टिंग के उपरांत उनका चयन जीएसटी ऑफिसर के पद पर हुआ था।
इस नौकरी से भी वो संतुष्ट नहीं थी, सिविल सर्विस में उनका मन था, उन्होंने पीसीएस परीक्षा दी और जीएसटी अफसर के रूप में करीब दो वर्ष की नौकरी के उपरांत पीसीएस 2017 बैच में उनका चयन प्रथम श्रेणी की अधिशासी अधिकारी के रूप में हो गया था। प्रशिक्षण पूर्ण होने के बाद उन्होंने 2020 में सहायक नगर आयुक्त लखनऊ के पद पर सर्विस को ज्वाइन किया। तीन वर्ष उक्त पद पर सेवा प्रदान करने के बाद फरवरी 2024 को शासन ने उनका तबादला नगरपालिका परिषद् मुजफ्फरनगर में अधिशासी अधिकारी के पद पर कर दिया। पालिका के इतिहास में यह पहला अवसर था, जबकि यहां पर महिला ईओ की पोस्टिंग हुई थी। 16 फरवरी को उन्होंने यहां आकर कार्यभार ग्रहण किया और इसके बाद महिला चेयरपर्सन मीनाक्षी स्वरूप के साथ शहरी विकास की बिसात पर उनकी ऐसी जुगलबंदी चली कि पालिका कई ऐतिहासिक आयाम स्थापित करने जा रही है।