चेयरमैन को मिली और सुरक्षा, ईओ को देनी होगी हर प्रस्ताव की गारंटी
नगरीय निकायों की बोर्ड बैठक पारित होने वाले एजेंडे के हर प्रस्ताव पर निमय-अधिनियम की जांच कर ईओ को रिपोर्ट देने के निर्देश
मुजफ्फरनगर। नगरीय निकायों में अब चेयरमैन की कुर्सी और अधिकारों को और भी ज्यादा सुरक्षा मिलने की व्यवस्था लागू की जा रही है। अभी तक बोर्ड बैठकों में नियमों के विपरीत लाये जाने वाले प्रस्तावों और कार्यों को पारित किये जाने की शिकायतों में चेयरमैन की गर्दन ही फंसती रही है, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। बोर्ड बैठक में छोटे-बड़े सभी प्रस्तावों के सही और नियमानुसार होने की लिखित गांरटी अधिशासी अधिकारी को देनी होगी और उनकी गारंटी पर जिलाधिकारी संस्तुति करेंगे, इसके बाद ही निकायों की बोर्ड बैठक का एजेंडा मंडलायुक्त द्वारा स्वीकृत किया जायेगा। ऐसा नहीं होने पर बोर्ड मीटिंग में पारित एजेंडे की प्रोसीडिंग को मंडलायुक्त की स्वीकृति नहीं मिल पायेगी। इस नई व्यवस्था को सहारनपुर मंडल के तीनों मिलों के साथ ही मुजफ्फरनगर जनपद की सभी दस निकायों में सख्ती के साथ लागू कर दिया गया है।
नगरीय निकायों में किसी भी कार्य को कराये जाने के लिए बोर्ड मीटिंग में बहुमत के आधार पर प्रस्ताव का पारित होना अनिवार्य है। ऐसे में पिछले अनुभव की बात करें तो बोर्ड मीटिंग में कई ऐसे प्रस्ताव भी पारित किये जाते रहे हैं, जो नियमों और शासनादेश की कसौटी पर खरे साबित नहीं होते और इन प्रस्तावों के आधार पर कराये जाने वाले कार्यों की शिकायत के बाद निकायों के चेयरमैन की गर्दन जांच और कार्यवाही की चक्की में फंसती रही है। ऐसे में अब शासनादेश के अनुसार ऐसी सख्त व्यवस्था निकायों की बोर्ड मीटिंग के एजेंडे को लेकर की जा रही है, जिससे न केवल निकाय चेयरमैन को प्रशासनिक दृष्टिकोण से अधिकारों के प्रति सुरक्षा मिलेगी, बल्कि कोई भी चेयरमैन बोर्ड बैठक में पारित होने वाले नियम विरोधी प्रस्तावों को लेकर जांच के दायरे में नहीं फंस पायेगा। इसमें निकायों के अधिशासी अधिकारी की जिम्मेदारी और जवाबदेही बोर्ड मीटिंग के एजेंडे में आने वाले प्रत्येक प्र्रस्ताव के लिए तय कर दी गई है।
सूत्रों के अनुसार सहारनपुर मंडल के कमिश्नर डॉ. हृषिकेश भास्कर यशोद द्वारा शासनादेश का पालन कराने के लिए मंडल के तीनों जनपदों सहारनपुर, शामली और मुजफ्फरनगर की सभी नगरीय निकायों में होने वाली बोर्ड बैठक के दौरान पारित एजेंडे के लिए जिलाधिकारी के द्वारा भेजी जाने वाली प्रोसेडिंग रिपोर्ट की स्वीकृति के लिए नई व्यवस्था लागू की है। अभी तक यह व्यवस्था थी कि निकायों की बोर्ड मीटिंग के एजेंडे में पारित एजेंडे को बहुमत के आधार पर प्रस्ताव के फेल और पास होने की सूचना के साथ प्रोसेडिंग अधिशासी अधिकारी जिलाधिकारी को भेजते रहे और जिलाधिकारी अपनी संस्तुति के साथ इसको स्वीकृति के लिए मंडलायुक्त को प्रेषित कर दिया करते थे, प्रोसेडिंग जाने की व्यवस्था तो यही रहेगी, लेकिन इसमें बोर्ड बैठक के पारित एजेंडे के प्रत्येक प्रस्ताव पर अधिशासी अधिकारी का विशेष मन्तव्य ;टिप्पणीद्ध को अनिवार्य कर दिया गया है। हर प्रस्ताव पर अधिशासी अधिकारी पांच बिन्दुओं पर अपना मन्तव्य दर्ज करायेंगे और इसके बाद प्रोसेडिंग जिलाधिकारी को भेजी जायेगी, जहां से वो अपनी विशेष संस्तुति के साथ प्रोसेडिंग स्वीकृति के लिए मंडलायुक्त सहारनपुर को भेजने का काम करेंगे। इसके लिए अधिशासी अधिकारियों को मंडलायुक्त द्वारा आदेश भी जारी किये गये और पिछले दिनों इन आदेशों का पालन सुनिश्चित नहीं होने पर मुजफ्फरनगर जनपद की सभी दस निकायों के अधिशासी अधिकारियों को सहारनपुर बुलाकर कही मीटिंग करते हुए इस व्यवस्था को सख्ती के साथ लागू करने पर बल दिया गया था। मीटिंग में स्पष्ट कर दिया गया था कि अधिशासी अधिकारियों को एजेंडे में शामिल प्रत्येक प्रस्ताव को नियमों और अधिनियम व शासनादेश के पैमाने पर परखना है और पांच बिन्दुओं पर अपना मन्तव्य दर्ज कराना है, इसमें प्रमुख बिन्दू यही है कि अधिशासी अधिकारी इस बात की गारंटी लेगा कि पारित प्रस्ताव नियम व अधिनयम की कसौती पर बिल्कुल सही है या फिर नहीं। इससे साफ है कि जब बोर्ड मीटिंग में पारित एजेंडे के प्रत्येक प्रस्ताव पर अधिशासी अधिकारी उसके सही होने की गारंटी लेगा तो भविष्य में किसी भी कार्य के लिए अनियमितता होने पर सीधे चेयरमैन को दोषी नहीं ठहराया जा सकेगा।