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चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल की ज्वाइनिंग भाजपा का फेलियर!

आयरन लेडी का मंत्री की बैठक में जिलाध्यक्ष पर बिफरना भाजपाई खेमे को कर रहा नाराज, भाजपा के ही कुछ सभासद चेयरपर्सन के रवैये को ठहरा रहे हैं जायज, सभी को अखर रहा बिना बात किये आदेश देना

चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल की ज्वाइनिंग भाजपा का फेलियर!
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मुजफ्फरनगर। कहावत है कि सैंया भये कोतवाल अब डर काहे का....कुछ ऐसा ही मामला नगरपालिका परिषद् की चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल की भाजपा में ज्वाइनिंग के साथ ही भाजपाई खेमे के कुछ सभासदों के सामने भी था, लेकिन उनको शायद यह नहीं पता था कि मूल्यों की राजनीति और बिना भेदभाव की कार्यप्रणाली रखने वाली जिस चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल को कांग्रेसी हाथ से छिटकाकर वह भाजपाई चोला पहनाकर जश्न मना रहे हैं, उनका वही कदम भाजपा के लिए एक बड़ा फेलियर साबित होने जा रहा है।

अभी अंजू अग्रवाल को भगवा लबादा ओढ़े जुम्मा-जुम्मा चार दिन ही हुए हैं और भाजपा के नेताओं को अपनी करनी पर पछतावा होने लगा है। मंत्री के सामने ही जिस प्रकार जनता के बीच आयरन लेडी होने का रूतबा पा चुकी अंजू अग्रवाल ने भाजपाई जिलाध्यक्ष के 'आदेश' को ठुकराकर महफिल लूटने को जौहर दिखाया, वह आज भाजपा खेमे के सभासदों के मुंह पर ताला लगा चुका है। आज भी भाजपाई सभासदों के खेमे में उतनी ही बैचेनी है, जितना की 30 सितम्बर से पहले चेयरपर्सन के रवैये को लेकर रहा करती थी। मंत्री के सामने चेयरपर्सन का बिफरना भाजपाई खेमे को नाकाबिले बर्दाश्त वाली बात लग रहा है। हालांकि इस प्रकरण को लेकर भाजपा के ही कुछ सभासद चेयरपर्सन के रवैये को जायज ठहराने से भी पीछे नहीं हट रहे हैं। इससे साफ है कि चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल की भाजपा में ज्वाइनिंग बड़े नेताओं का फेलियर साबित होने लगी है।

नगर पालिका परिषद् की चेयरपर्सन ने शहर के विकास को आगे बढ़ाने के लिए 07 अक्टूबर को बोर्ड बैठक बुलाई है। इसके लिए ईओ विनय कुमार मणि त्रिपाठी की ओर से 01 अक्टूबर को एक विशेष प्रस्ताव सहित कुल 29 प्रस्तवों का एजेंडा सभासदों के लिए जारी कर दिया गया। इसमें चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल ने दो बड़े प्रस्ताव संख्या 338 विशेष जेई निर्माण मूलचन्द प्रकरण और प्रस्ताव संख्या 363 अहिल्याबाई होल्कर चौराहा सौन्दर्यकरण का भुगतान को लेकर शामिल कराये। दरअसल ये दोनों ही प्रस्ताव भाजपा सभासदों की ओर से उठाते हुए चेयरपर्सन की कार्यप्रणाली को लेकर आरोप लगाने के साथ साथ जिला प्रशासन और शासन तक शिकायत कर जांच कराई गयी। इसमें अहिल्याबाई होल्कर चौराहा प्रकरण का प्रस्ताव बिना भाजपाई सभासदों से सलाह मशविरा किये ही शामिल करने पर भगवा ब्रिगेड को अखर गया।

भाजपा सभासदों ने जिलाध्यक्ष विजय शुक्ला से इसकी शिकायत की और भाजपा की ज्वाइनिंग के जुम्मा-जुम्मा चार दिन बाद ही चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल की मंत्री जी के आवास पर पेशी लगवा दी गयी। चलो यह भी ठीक था, लेकिन बिना चेयरपर्सन का पक्ष सुने उनको बता दिया गया कि अब पालिका में मनमर्जी से काम नहीं होगा, जो कुछ करना है, सभासद की कमेटी से विचार विमर्श के उपरांत करना होगा। बात यहीं से खराब हो गयी। जिलाध्यक्ष विजय शुक्ला के फरमान के बाद मंत्री की महफिल में जब चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल बिफरी तो भाजपाई खेमे में सन्नाटा छा गया। मंत्री जी ने अपनी सूझबूझ से बीच-बचाव तो करा दिया, लेकिन अंजू अग्रवाल ने दो टूक कह दिया, पालिका मेरी है, वहां जो कुछ करना है, मुझे मेरी मर्जी से करना है। इसमें किसी का दखल मुझे मंजूर नहीं। अपने अडियल रवैये के कारण पहले ही भाजपाई खेमे का सिरदर्द बन रही अंजू अग्रवाल का यह रवैया सोमवार को भी भाजपा नेताओं के साथ ही पक्ष विपक्ष के बीच चर्चाओं में रहा।

कुछ भाजपा सभासदों ने उनके इस रवैये की प्रशंसा करते हुए कहा कि एजेंडे को लेकर उनसे पहले भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को स्वयं बात करनी थी, फिर सभासदों के बीच बुलाकर बीच का रास्ता निकालकर मतभेद दूर करने चाहिए थे, लेकिन उनको सीधे भाजपा सभासदों के सामने पेशी लगवाकर आदेश सुना दिया गया, जो व्यवहारिक तौर पर गलत है। इन सभासदों का कहना है कि मंत्री जी बैठक को नाराजगी के कारण छोड़कर चले जाने से कई सवाल उठ रहे है। यह लोग मानते हैं कि अंजू अग्रवाल की भाजपा में ज्वाइनिंग यहां के बड़े नेताओं का फेलियर साबित हुई है। अब हम उनका सार्वजनिक तौर पर विरोध करने का साहस भी नहीं जुटा पायेंगे।

यो चैख्खा, घर-कुनबा कर दिया नाम, राड़ ज्यौं की त्यौं

मुजफ्फरनगर। नगरपालिका परिषद् में अध्यक्ष अंजू अग्रवाल और भाजपाई सभासदों के बीच राड़ जिस बात को लेकर थी, उनकी भाजपा में ज्वाइनिंग के बाद भी वह जस की तस है। मसला यही था कि पालिकाध्यक्ष किसी की सुनती नहीं है, अपनी मर्जी से काम करती हैं और कराती हैं। इसी को लेकर भाजपा नेताओं को कई बार बड़े विवादों से दो चार होना पड़ा और पालिकाध्यक्ष अंजू अग्रवाल भी बेखौफ होकर सत्ता पक्ष के खिलाफ डटकर खड़ी नजर आई थी। इसका हल भाजपा के बड़े नेताओं ने उनकी भाजपा में ज्वाइनिंग ही समझा था, लेकिन रविवार की मंत्री जी के आवास की बैठक का जो सीन भाजपाई सभासदों ने देखा, उससे कई सभासदों की नींद उड़ी रही। इन सभासदों का कहना है कि भाजपा की गाइडलाइन दूसरी पार्टियों से अलग है, पालिका अध्यक्ष को इसका सम्मान करते हुए सभी को साथ लेकर चलना चाहिए। जो विवाद या मतभेद हैं उनको दूर करने के लिए मंत्री जी ने प्रयास किया था, कोई ऐसा कारण नहीं था, जिस पर इतना बखेडा किया जाये। वहीं पालिकाध्यक्ष अंजू अग्रवाल का कहना है कि भाजपा में वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास, की नीति से प्रभावित होकर शामिल हुई। पालिका में अध्यक्ष बनने के बाद पहले ही दिन से उनका प्रयास है कि बिना भेदभाव के शहर का विकास कराया जाये। भाजपा में जाने से पूर्व भी कई भाजपा सभासदों के वार्ड में बड़े विकास कार्य उनके द्वारा कराये गये। अब भी उनकी नीति यही है। भाजपा के लोग अपनी ही नीति स्पष्ट नहीं कर पा रहे हैं। सबका साथ सबका विकास की बातें, केवल कोरी हैं। मैं स्वहित से ज्यादा जनहित को सर्वोपरि मानकर कार्य कर रही हूं, भाजपा में हूं, भाजपा के लोगों का सम्मान भी मेरी प्राथमिकता में है, लेकिन नाजायज दबाव मुझे कतई मंजूर नहीं।

जिलाध्यक्ष बतायें, भाजपा नेता सभासद कमेटी में क्यों?

मुजफ्फरनगर। अंजू अग्रवाल की भाजपा में ज्वाइनिंग के बाद भाजपाईयों में जो उत्साह था, आज वह उतने ही हतोत्साहित नजर आते हैं। मंत्री जी के आवास पर जिलाध्यक्ष विजय शुक्ला ने पालिकाध्यक्ष को बताया कि पार्टी स्तर से पालिका के लिए पांच सभासदों की कमेटी बना दी गयी है, जिसमें भाजपा सभासद दल के नेता प्रेम कुमार उर्फ प्रेमी छाबड़ा, प्रियांशु जैन, विपुल भटनागर, संजय सक्सेना और नामित सभासद सुषमा पुण्डीर शामिल किये गये। इसमें सबसे बड़ा सवाल यही है कि एक भाजपा नेता को सभासद नहीं होने पर भी इस कमेटी में तरजीह दी गयी। भाजपा नेता संजय सक्सेना की पत्नी रानी सक्सेना सभासद हैं, लेकिन रानी को कमेटी में रखने के बजाये संजय सक्सेना को कमेटी में लाया गया। जबकि राज्य सरकार का कानून है कि किसी भी निर्वाचित प्रतिनिधि के पति को कमेटी में रखना तो दूर शासकीय बैठकों में भी आने की अनुमति नहीं है। यही सवाल चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल का भी है, उनका कहना है कि भाजपा जिलाध्यक्ष ही यह बतायें कि सभासद न होने पर संजय सक्सेना कमेटी में क्यों शामिल किये गये हैं।

अंजू अग्रवाल की ज्वाइनिंग का था विरोध, इस्तीफे की दी थी धमकी

मुजफ्फरनगर। मंत्री के दरबार में चेयरपर्सन की पेशी और फिर चेयरपर्सन के रवैये से हुई फजीहत ने भाजपा में बैचेनी पैदा कर रखी है। भाजपा में अंजू अग्रवाल की ज्वाइनिंग का विरोध शुरू से ही रहा है। हालांकि भाजपा नेताओं के विरोध के कारण अंजू अग्रवाल ने भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के बीच पैठ बनाने का कोई भी अवसर नहीं छोड़ा। वह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिली तो उन्होंने यूपी भाजपा अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह से भी मुलाकात की थी। टाउनहाल में तत्कालीन नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना से मिलकर उन्होंने अपना पक्ष रखा तो इस मुलाकात का जो रिजल्ट सामने आया था, उसने भाजपाईयों की नींद उड़ा दी थी। इतना हीं नहीं वह अपना पक्ष दिल्ली और लखनऊ में मजबूत बनाने के बाद ही शहर के विकास के लिए स्टेट फारवर्ड होकर बैटिंग कर रही थी। ऐसे में जब 30 सितम्बर के उनके ज्वाइनिंग डील को सार्वजनिक कार्यक्रम की शक्ल दी गयी तो भाजपा में कई स्तर पर इसका विरोध हुआ। सूत्रों के अनुसार एक भाजपा सभासद ने तो पार्टी नेताओं को अपना विरोध दर्ज करते हुए अंजू अग्रवाल के पार्टी में आने पर इस्तीफा देने की चेतावनी भी दी थी। बताया गया है कि इसी नाराज सभासद ने बोर्ड बैठक से पूर्व ही एजेंडे पर ऐतराज के बहाने पालिकाध्यक्ष के खिलाफ यह सारा कुचक्र रचा, जिसमें खुद भाजपा ही फंसकर रह गयी है।

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