MUZAFFARNAGAR-600 साल पुराने शिव मंदिर को स्वामी यशवीर ने किया जागृत
1989 में ब्राह्मण समाज के पलायन के बाद मुस्लिम आबादी बढ़ने से बंद हो गया था शिव मंदिर, अब पूजा-अर्चना होगी शुरू

मुजफ्फरनगर। शहर के लद्दावाला में करीब तीन दशक से बंद एक मूर्तिविहीन मंदिर को जागृत कराने के बाद गुरूवार को बघरा आश्रम के पीठाधीश्वर स्वामी यशवीर महाराज ने सैंकड़ों लोगों के साथ मीरापुर क्षेत्र में मुस्लिम आबादी के बीच बंद पड़े एक प्राचीन शिव मंदिर में हवन पूजन करते हुए मंदिर का पुनःजागरण किया। इस दौरान स्वामी यशवीर महाराज के नेतृत्व में सैकड़ों क्षेत्रवासियों की उपस्थिति में मंदिर में हवन-पूजन और जीर्णाे(ार कार्य किया गया। सुरक्षा की दृष्टि से प्रशासन भी पूरी तरह सतर्क रहा। एसडीएम जानसठ सुबोध कुमार और सीओ यतेंद्र सिंह नागर भारी पुलिस बल के साथ मौके पर मौजूद रहे, ताकि किसी भी प्रकार की अप्रिय स्थिति न उत्पन्न हो।
बता दें कि मीरापुर के मोहल्ला मुस्तर्क में स्थित करीब 600 साल पुराना शिव मंदिर वर्षों से वीरान पड़ा होन की खबर पिछले दिनों मीडिया की सुर्खियों में आई थी। यह मंदिर घनी मुस्लिम आबादी के बीच होने के कारण यहां पर पूजा पाठ बंद हो गया था। इस मंदिर के बंद होने की खबरों पर स्वामी यशवीर महाराज ने आगे आकर हिंदूवादी संगठनों को जोड़कर इसको जागृत कराने का ऐलान किया था। गुरूवार को स्वामी यशवीर महाराज सैंकड़ों लोगों के साथ पूर्व घोषणा के अनुसार स्वामी यशवीर महाराज मीरापुर पहुंचे और भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच उन्होंने प्राचीन शिव मंदिर पर जाकर हवन किया तथा पूजा अर्चना करते हुए मंदिर का पुनःजागरण किया।
मंदिर के पुनः खुलने से श्र(ालुओं में हर्ष का माहौल है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह मंदिर कई वर्षों से बंद पड़ा था और इसकी देखरेख भी नहीं हो रही थी। इस धार्मिक अनुष्ठान के दौरान स्वामी यशवीर महाराज ने प्रवचन भी दिया और मंदिर के जीर्णाे(ार को लेकर लोगों से सहयोग की अपील की। कहा कि यह मंदिर गांव की सांस्कृतिक और धार्मिक आस्था से जुड़ा हुआ है, इसलिए इसके पुनर्निर्माण और नियमित पूजा-अर्चना की व्यवस्था की जा रही है। इस अवसर पर बड़ी संख्या में भक्तजन उपस्थित रहे और धार्मिक अनुष्ठान में भाग लिया। उन्होंने बताया कि इस मंदिर का इस मंदिर का ऐतिहासिक महत्व होने के बावजूद, यह लंबे समय से उपेक्षित था। इसकी स्थापना 600 साल पहले की बताई ग्ई है। बताया जाता है कि पहले इस क्षेत्र में ब्राह्मण परिवार निवास करते थे, लेकिन समय के साथ मुस्लिम आबादी बढ़ने लगी। वर्ष 1989 में ब्राह्मण परिवारों ने यहां से पलायन कर लिया, जिसके बाद मंदिर बंद हो गया।