योगी सरकार में दुर्दांत अपराधियों असद व गुलाम के एनकाउंटर पर समाजवादी पार्टी का ऐतराज उचित नहीं – अशोक बालियान
Samajwadi Party's objection on encounter of dreaded criminals Asad and Ghulam in Yogi government is not justified
उत्तर प्रदेश में योगी सरकार की एसटीएफ ने प्रयागराज के माफिया व पूर्व सांसद अतीक अहमद का बेटा और पांच लाख का इनामी असद व उसके साथी गुलाम को झांसी में एसटीएफ ने मुठभेड़ में ढेर कर दिया है। दुर्दांत अपराधियों असद व गुलाम के एनकाउंटर के कुछ ही घंटों बाद समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ट्विट कर ऐतराज जताया है और वहीं उत्तरप्रदेश में उसकी सहयोगी पार्टी राष्ट्रीय लोकदल ऐसी घटनाओं पर चुप्पी साध लेती है। बहुजन समाजवादी पार्टी ने भी इस पुलिस मुठभेड़ की जाँच की मांग की है।जबकि इन अपराधियों ने पूर्व विधायक राजूपाल हत्या केस के मुख्य गवाह उमेशपाल के साथ ही उसकी सुरक्षा में लगे दो पुलिसकर्मियों की भी हत्या की थी।
उत्तर प्रदेश के बिजनोर में पुलिस ने अभी हाल में ही ढाई लाख रुपये के इनामी फरार अपराधी आदित्य राणा को पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया है। लेकिन इस एनकाउंटर पर किसी ने भी अंगुली नहीं उठाई है, क्योकि इस पुलिस एनकाउंटर पर इन नेताओं के वोटबैंक पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा था। इससे पता चलता है कि ये नेता वोट के आधार पर ही पुलिस एनकाउंटर पर बोलते है।
जनपद मुजफ्फरनगर के थाना चरथावल में वर्ष 2018 में एक दलित लड़की व उसकी बहन के लड़के को तीन अपराधियों ने उनके ही गाँव में ईख के खेत में खींच लिया था और बच्चे के शोर मचाने पर उसकी हत्या कर दी गयी थी, इसके बाद लड़की से रेप किया और फिर उसकी भी हत्या कर दी गयी थी। इस हत्याकांड में अभियुक्त अल्पसंख्यक वर्ग से होने के कारण दलित नेताओं की भी दिलचस्पी पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने में नहीं थी।
अभी हाल में इस मामले में तीनों आरोपियों को कोर्ट ने संदेह का लाभ बताकर बरी कर दिया। कोर्ट ने तीन बार निर्णय की तारीखें क्यों बदली, इससे परिवार संतुष्ट नहीं है। लेकिन सब के मुहँ पर टला लगा हुआ है। अब उस गरीब परिवार को न्याय कौन देगा या कौन न्याय दिलाएगा, क्योकि सुप्रीमकोर्ट की बड़ी महिला वकील भी खास वर्ग के केस हाथ में लेती है, जिनसे वे चर्चा में आये,चाहे केस झूठा ही क्यों न हो।
हमारे देश के जिन राज्यों में कानून व्यवस्था में उल्लेखनीय सुधार हुआ है, उनमें से एक उत्तर प्रदेश है। इससे पहले भी इन पार्टियों ने नौ पुलिस कर्मियों की हत्या करने वाले विकास दुबे के एनकाउंटर पर भी सवाल उठाये थे, हालांकि इस घटना के सम्बन्ध में बनाये गए तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग ने उत्तर प्रदेश पुलिस को विकास दुबे मुठभेड़ में क्लीनचिट दे दी थी।
हमारे देश में कुख्यात और दुर्दांत चेहरों में से कई को बाकायदा लोकतांत्रिक तरीके से चुनकर माननीय जनप्रतिनिधि बनाते रहे है और आगे भी बनते रहेंगे। आखिर ऐसा क्यों होता है कि जिसे पूरा समाज एक दुर्दांत अपराधी मानता है उसे ही अपना जनप्रतिनिधि चुन लेते है। मगर यह भी विचित्र बात ही है कि इस सबके बावजूद हर शख्स ऐसे अपराधियों के एनकाउंटर पर खुश भी होता है।
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार में दुर्दांत अपराधियों के खिलाफ प्रभावी कार्यवाही हो रही है और पुलिस एनकाउंटर में दुर्दांत अपराधी मारे जा रहे है या उनको मारे जाने का डर सता रहा है। एनकाउंटर का समाजिक पहलू यह है कि एनकाउंटर अगर कानून की कसौटी पर दुर्दांत व सही अपराधी का होता है, तो इसका सकारात्मक प्रभाव समाज में जाता है। क्योकि दुर्दांत अपराधी जेल जाने से नहीं डरते हैं। ऐसा इसलिए,क्योंकि उन्हें पता होता है कि वो किसी न किसी तरह से जेल से बाहर आ जाऐंगे।
वहीं, अगर उचित कानूनी तरीके से एनकाउंटर में किसी दुर्दांत अपराधी या हिस्ट्रीशीटर की मौत होती है तो इससे अपराधियों के बीच डर का माहौल बन जाता है। पुलिस को सीआरपीसी की धारा 46 बल प्रयोग करने का अधिकार देती है ऐसे में जब गिरफ्तारी के दौरान मौत की सजा या आजीवन कारावास की सजा पाने वाला अपराधी भागने या मुठभेड़ करने की कोशिश में मारा जाता है।
हमने अपनी अमेरिका यात्रा के समय जानकारी हुई थी कि एक दिन अमेरिका के न्यू ओर्लांस शहर के एक कम भीड वाले स्टोर को अपराधियों ने लूट के लिए चुना था। अभी लुटेरों ने लूट की शुरूआत की ही थी कि तभी स्टोर को पुलिस ने चारों तरफ से घेर लिया था। पहले पुलिस ने लुटेरों को चेतावनी दी थी। लेकिन वो बाहर नहीं निकले और अंदर से ही गोली चलाना शुरू कर दी थी। फिर पुलिस ने उनके बाहर निकलने का इंतज़ार किया। इसके बाद जैसे ही लुटेरे बाहर आए, तो एनकाउंटर शुरू हो गया और ये सब कैमरे पर भी रिकॉर्ड हो रहा था। सभी लुटेरे मारे गए थे और किसी ने भी इस एनकाउंटर कोई सवाल नहीं उठाया था।
वहीँ भारत में एनकाउंटर दुर्दांत अपराधी के एनकाउंटर पर भी सवाल उठाये जाते है। वर्ष 2019 के दिन हैदराबाद में एक युवा महिला वेटनरी चिकित्सक की बलात्कार के बाद चार अपराधियों ने बेरहमी से हत्या कर दी थी, इस घटना के बाद चारों आरोपियों को हैदराबाद पुलिस ने एनकाउंटर में मार गिराया था। सुप्रीम कोर्ट में मामला जाने पर एक आयोग गठित किया गया था, उस जाँच आयोग की रिपोर्ट कहा था कि इन लोगों पर पुलिस द्वारा जानबूझकर गोलियां चलाई गई थीं। इस रिपोर्ट के बाद एनकाउंटर में शामिल 10 पुलिसकर्मियों पर अपराध के लिए केस चल रहा है। जबकि एनकाउंटर में मारे गए लोग इस बर्बरतापूर्ण घटना में शामिल थे या नहीं थे इस पहलु को भी देखा जाना चाहिए था। सुप्रीम कोर्ट में वकीलों का यह समहू केवल एक खास वर्ग के लिए ही सुप्रीम कोर्ट जाता है।
वर्ष 2021 में राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़ों से पता चलता है कि रेप और हत्या के मामले में दोष सिद्धी दर सबसे ज़्यादा कम है। आमतौर पर जब कानूनी कार्रवाई लंबी खिंचती है, तो पुलिस को असहाय महसूस होता है, यह बेहद गंभीर मामलों में भी होता है। दुर्दांत अपराधी विकास दुबे ने पुलिस उपअधीक्षक के सिर और छाती में गोली मारने के बाद उनके पैर कुल्हाड़ी से काट दिए थे, लेकिन उसके पुलिस एनकाउंटर में मारे जाने के बाद कुछ लोगों ने उसके लिए मानवाधिकार की दुहाई दी थी, जबकि उसके लिए कैसा मानव अधिकार?
कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश विधानसभा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने समाजवादी पार्टी (सपा) पर निशाना साधते हुए कहा था कि इस पार्टी ने अपराधियों और माफिया को न सिर्फ पाला-पोसा, बल्कि उन्हें विधायक और सांसद तक बनाया है।
देशभर में संगठित अपराध व उसके सरगनाओं के खात्मे के लिए भारत में एक संघीय पुलिस फ़ोर्स का गठन किया जाने की भी जरूरत है। हमारी राय में दुर्दांत अपराधियों का खात्मा होना चाहिए।
अशोक बालियान, चेयरमैन,पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन