14 साल की आयु में ही जब चंद्रशेखर हो गये 'आजाद'
भारत के महान क्रांतिकारी और गुलाम भारत में गरम दल के नेताओं में शुमार चंद्रशेखर आजाद के 90वें बलिदान दिवस पर देश ने श्रद्धांजलि दी।
भारत की आजादी के लिए अपनी जान की कुर्बानी देने वाले देश के महान क्रांतिकारी और निडर व आजाद स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद ने किशोर अवस्था में ही गांधी जी के असहयोग आंदोलन में भागीदारी की और 24 साल की आयु में देश के लिए अपना जीवन कुर्बान कर दिया। उन्होंने जीवन में भारतीयों को अंग्रेजी दासता से मुक्त कराने के लिए एक संकल्प लिया, जिसमें उन्होंने नारा दिया था, ''मैं आजाद हूँ, आजाद रहूँगा और आजाद ही मरूंगा'', इसी संकल्प को पूरा करते हुए वह भारत के लिए जिये और भारत के लिए ही शहीद हो गये। अंग्रेज उनको जीते जी नहीं पकड़ पाये। उनकी वीरता का गवाह इलाहाबाद का पार्क आज भी कई कहानी कहता नजर आता है। मात्र 24 साल की उम्र जो युवाओं के लिए जिंदगी के सपने देखने की होती है, उसमें चन्द्रशेखर आजाद अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते हुए शहीद हो गए। आज देश में उनका 90वां बलिदान दिवस मनाया जा रहा है। इस दौरान भारतीय जनता पार्टी के साथ ही सभी राजनीतिक दलों, सरकार के मंत्रियों और अन्य लोगों ने चन्द्रशेखर के बलिदान को याद करते हुए अपनी श्र(ांजलि अर्पित की है।
Humble tributes to the revolutionary freedom fighter #ChandraShekharAzad on his death anniversary. His patriotism, valour & undaunting spirit remains an inspiration. The nation remains forever indebted to his supreme sacrifice towards the goal of independence.
— Ashok Gehlot (@ashokgehlot51) February 27, 2021
27 फरवरी, 1931 के दिन 1932 में, इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में ब्रिटिश पुलिस के साथ हुए मुकाबले में चंद्रशेखर आजाद ने अपने साथियों के साथ मिलकर ऐसा जौहर दिखाया कि अंग्रेज अफसरों के भी पसीने छूट गये। इस मुकाबले में अंतिम गोली बचने के बाद घायल चंद्रशेखर ने अपने संकल्प को पूरा किया और एक पिस्तौल व कुछ कारतूसों के साथ लंबे समय तक पुलिस से लड़ने के बाद, आजाद ने अपनी बंदूक में छोड़ी गई एक गोली से खुद को जीवित पकड़ने की अंग्रेजों की उम्मीद पर पानी फेरते हुए जान दे दी। इस तरह एक स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में देश के लिए शहीद होने की अपनी प्रतिज्ञा को उन्होंने पूरा किया। उन्होंने अंग्रेज हुकूमत में बंदी नहीं बनने और ना ही जीवित पकड़ने जाने का संकल्प लिया था।
चंद्र शेखर का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्य प्रदेश के झबुआ जिले के भावरा गाँव में हुआ था। आज इस गांव को आजादनगर के नाम से पहचाना जाता है। वर्ष 1919 में हुए जलियांवाला बाग नरसंहार से किशोर अवस्था में ही चंद्रशेखर बुरी तरह प्रभावित हुए, इस घटना के बाद वह औपनिवेशिक शासकों के खिलाफ घृणा करने लगे और इसके बाद ब्रिटिश राज से भारत को मुक्त करने का सपना देखकर उन्होंने एक क्रांतिकारी का जीवन शुरू कर दिया था। 14 साल के एक युवा के रूप में, वह महात्मा गांधी के नेतृत्व में 1920-21 में चलाये गये असहयोग आंदोलन से काफी प्रेरित रहे और इसमें शामिल हुए। आंदोलन में शामिल होने के कारण पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद, चंद्रशेखर को एक मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया। यहां जब मजिस्ट्रेट ने उनका नाम पूछा तो उन्होंने अपना नाम 'आजाद', अपने पिता का नाम 'स्वतंत्र' और अपने निवास स्थान का पता जेल बताया था। उन्हें 15 कोड़ों की सजा दी गई। हर कोड़े के वार के साथ उन्होंने, 'वन्दे मातरम्' और 'महात्मा गांधी की जय' का स्वर बुलंद किया। इसी घटना के बाद से चंद्रेशखर के नाम के साथ आजाद की उपाधि भी जुड़ गई और उन्होंने वास्तव में एक आजाद की भांति ही जीवन को जी कर दिखाया।
मां भारती की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले, महान क्रांतिकारी और अग्रणी स्वतंत्रता सेनानी अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद के बलिदान दिवस पर विनम्र श्रद्धांजलि। pic.twitter.com/fKiZb6hiBm
— BJP (@BJP4India) February 27, 2021
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक एवं लोकप्रिय स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद के पिता का नाम पंडित सीताराम तिवारी एवं माता का नाम जगदानी देवी था। उनके पिता ईमानदार, स्वाभिमानी, साहसी और वचन के पक्के थे। यही गुण चंद्रशेखर को अपने पिता से विरासत में मिले थे। चंद्रशेखर आजाद 14 वर्ष की आयु में बनारस गए और वहां एक संस्कृत पाठशाला में पढ़ाई की। भारत में जब क्रांतिकारी आंदोलन उग्र हुआ, तब आजाद उस तरफ खिंचे और 'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट आर्मी' से जुड़े। रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में आजाद ने 1925 के काकोरी कांड में सक्रिय भाग लिया और पुलिस की आंखों में धूल झोंककर फरार हो गए। 17 दिसंबर, 1928 को चंद्रशेखर आजाद ने भगत सिंह और राजगुरु के साथ मिलकर शाम के समय लाहौर में पुलिस अधीक्षक के दफ्तर को घेर लिया और ज्यों ही जलियावाला बाग नरसंहार कराने वाला अंग्रेज अफसर जे.पी. साण्डर्स अपने अंगरक्षक के साथ मोटर साइकिल पर बैठकर निकला तो राजगुरु ने पहली गोली दाग दी, जो साण्डर्स के माथे पर लग गई वह मोटरसाइकिल से नीचे गिर पड़ा। इसके बाद फिर भगत सिंह ने आगे बढ़कर कई गोलियां दाग कर उसे बिल्कुल ठंडा कर दिया। जब साण्डर्स के अंगरक्षक ने उनका पीछा किया, तो चंद्रशेखर आजाद ने अपनी गोली से उसे भी समाप्त कर दिया। इतना ना ही नहीं लाहौर में जगह-जगह परचे चिपका दिए गए, जिन पर लिखा था- लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला ले लिया गया है। उनके इस कदम को समस्त भारत के क्रांतिकारियों द्वारा खूब सराहा गया।
My tribute to the great freedom fighter Shri #ChandrashekharAzad Ji on his death anniversary.
— Ravi Shankar Prasad (@rsprasad) February 27, 2021
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अलफ्रेड पार्क, इलाहाबाद में 1931 में उन्होंने रूस की बोल्शेविक क्रांति की तर्ज पर समाजवादी क्रांति का आह्वान किया। उन्होंने संकल्प किया था कि वे न कभी पकड़े जाएंगे और न ब्रिटिश सरकार उन्हें फांसी दे सकेगी। इसी संकल्प को पूरा करने के लिए उन्होंने 27 फरवरी, 1931 को इसी पार्क में स्वयं को गोली मारकर मातृभूमि के लिए प्राणों की आहुति दे दी। इस वीर क्रांतिकारी के बलिदान दिवस पर आज पूरे देश ने अपनी श्र(ांजलि अर्पित की है।
भारत के उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने स्वतंत्रता सेनानी को उनकी पुण्यतिथि पर याद करने के लिए ट्विटर पर लिया और लिखा, ''एक असाधारण नेता और एक सच्चे देशभक्त, आजाद ने कई लोगों को प्रेरित और प्रेरित किया। स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के लिए। हमारी मातृभूमि के लिए उनका सर्वोच्च बलिदान हमेशा याद किया जाएगा। केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी अपने ट्विटर अकाउंट के जरिए आजाद को श्रद्धांजलि दी, जिसमें कहा, 'महान स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद जी को उनकी पुण्यतिथि पर मेरी श्रद्धांजलि।
भारतीय जनता पार्टी की ओर से भी बलिदान दिवस पर चंद्रशेखर को याद करते हुए ट्वीट में कहा गया है, 'मां भारती की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले, महान क्रांतिकारी और अग्रणी स्वतंत्रता सेनानी अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद के बलिदान दिवस पर विनम्र श्रद्धांजलि।