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भ्रष्टाचार के खिलाफ जनप्रतिनिधि और अधिकारी लें कठोर संकल्पः कर्मवीर नागर

अहम पदों पर योग्य और ईमानदारों की तैनाती का सरकार को भी तय करना होगा क्राइटेरिया

भ्रष्टाचार के खिलाफ जनप्रतिनिधि और अधिकारी लें कठोर संकल्पः कर्मवीर नागर
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अगर भ्रष्टाचार के मामले में उत्तर प्रदेश की स्थिति पर ही चर्चा की जाए तो इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रदेश के मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार के विरुद्ध बहुत संजीदा हैं और भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति पर काम कर रहे हैं। कोई भी मौका हो प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों पर हमलावर ही नजर आते हैं। लेकिन सोचने का विषय यह है कि आखिर प्रदेश के मुख्यमंत्री की सख्ती के बाद भी भ्रष्टाचार पर अंकुश लगता क्यों नजर नहीं आ रहा है? शायद भ्रष्टाचार से आजिज आ चुकी आम जनता को भी समय और परिस्थितियों ने अब इस तंत्र में शामिल होने के लिए मजबूर कर दिया है। देश में पनपे भ्रष्टाचार के लिए अगर हम सरकारों पर ही दोषारोपण करें तो यह भी उचित नहीं होगा क्योंकि हर रोज गली कूचों में चर्चा का विषय बना भ्रष्टाचार का अहम मुद्दा चुनावों के ऐन वक्त लोगों के बीच से अचानक गायब सा हो जाता है। देश के लिए अभिशाप बन चुके भ्रष्टाचार के इस मुद्दे पर लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाले मीडिया जगत की चुप्पी भी जग जाहिर है।

आमतौर पर यह कहा जाता है कि भ्रष्टाचार ऊपर से नीचे की तरफ चलता है अगर यह बात सही है तो इसका सीधा सा ईशारा उन लोगों की तरफ है जो सरकार के उच्च पदों पर आसीन हैं । इसलिए भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए जनप्रतिनिधियों और उच्च पदस्थ सरकारी मशीनरी को भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए कठोर संकल्प के साथ पहल करनी होगी तभी भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा पाना संभव नजर आता है अन्यथा आमतौर पर देखने को यही मिल रहा है कि विभिन्न प्रदेशों में सरकार भले ही किसी भी राजनीतिक दल की हो लेकिन भ्रष्टाचार के मामले में कमोबेश हर प्रदेश का हाल एक जैसा ही है। पूरे देश में भ्रष्टाचार का यह आलम तब है जब पार्लियामेंट से पंचायत स्तर तक के जनप्रतिनिधि और राजनेता ईश्वर को साक्षी मानकर अपने पद की गोपनीयता भंग न करने एवं दुरुपयोग न करने की शपथ ग्रहण करने के बाद ही पद भार ग्रहण करते हैं। यहीं तक नहीं विभिन्न जनसभाओं में भाषण के दौरान और विभिन्न बैठकों में वार्ता के दौरान भी भ्रष्टाचार के खिलाफ खुलकर भाषण बाजी भी करते नजर आते हैं। ऐसे में अगर ईश्वर को साक्षी मानकर संविधान की शपथ लेने वाले भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की बजाय खुद ही भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाएं तो इसका सीधा सा तात्पर्य है कि देश का संविधान और ईश्वर इन भ्रष्टाचारियों के लिए कोई मायने नहीं रखता और जब ऐसी स्थिति आ जाए तो समझो देश में भ्रष्टाचार अपनी पूरी पैठ बना चुका है। लेकिन यह भी शाश्वत सत्य है कि जिस दिन जनता द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधि लाइलाज हो चुके भ्रष्टाचार के खात्मे का हृदय से कठोर संकल्प ले लेंगे उस दिन प्रदेश से ही नहीं पूरे देश से भ्रष्टाचार जड़मूल खत्म हो जाएगा। भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए सरकार को भी अहम प्रशासनिक पदों पर अधिकारियों की तैनाती में योग्यता और ईमानदारी के मापदंड की प्राथमिकता सुनिश्चित करनी होगी

तभी भ्रष्टाचार मुक्त प्रदेश और देश की कल्पना संभव है। अन्यथा फिलहाल तो ष्पैसा फेंको तमाशा देखोष् की कहावत चरितार्थ होती नजर आ रही है। लोगों की यह धारणा कुछ हद तक सच भी नजर आ रही है जैसा कि हाल ही में लोनी नगर पालिका की तत्कालीन अधिशासी अधिकारी कुमारी शालिनी गुप्ता के मामले में अखबारों में प्रकाशित खबरों के जरिए पढ़ने को मिला कि उक्त अधिकारी के विरुद्ध वित्तीय अनियमिताओं की जांच के 4 वर्ष बाद तब एक्शन होना संभव हो पाया जब यह मामला खतौली विधायक मदन भैया द्वारा प्रदेश के मुख्यमंत्री के संज्ञान में लाया गया अन्यथा तो भ्रष्टाचार के बाद भी अधिशासी अधिकारी कुमारी शालिनी गुप्ता गाजियाबाद की खोड़ा नगर पालिका और अमरोहा नगर पालिका में मलाईदार पदों पर तैनाती लेती रहीं। यहां तक कि जांच में दोषी पाए जाने पर अब भी उसे गौतम बुद्ध नगर जैसे महत्वपूर्ण जिले की नगर पालिका दादरी में तैनात किया जाना लोगों के मन में कई तरह के संदेह पैदा कर रहा है जबकि आमतौर पर यह कहा जाता है कि भ्रष्टाचार के आरोपियों को पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिलों की राह दिखाई जाती है। यह ऐसा अकेला मामला नहीं बल्कि एक बानगी मात्र है।

अगर सरकार भ्रष्टाचार का सचमुच खात्म करना चाहती है तो निश्चित तौर पर सख्त कदम उठाने होंगे। लेकिन लोगों का विश्वास तब डगमगा जाता है जब एक तरफ प्रदेश के मुखिया अवैध कॉलोनी बसाने, अवैध निर्माण करने और अवैध कब्जों के विरुद्ध सख्ती बरत रहे हों वहीं दूसरी तरफ धड़ल्ले से खुलेआम अवैध कॉलोनी बसाई जा रही हों, अवैध निर्माण हो रहे हों और अवैध कब्जे किए जा रहे हों तो ऐसे में भ्रष्टाचार समाप्त करने के संकल्प पर जनता का विश्वास डगमगाना स्वाभाविक है। क्योंकि यह ष्जनता है सब जानती है कि अंदर क्या है बाहर क्या सब पहचानती है ?ष् लेकिन जहां तक प्रदेश के मुख्यमंत्री की बात है तो कभी-कभी ऐसा भी लगता है कि ष्अकेला चना कभी भाड नहीं फोड़ सकता।ष् इसलिए सरकार के सभी अंगों को मिलकर भ्रष्टाचार खत्म करने का प्रयास करना होगा तभी भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा पाना संभव हो सकेगा।

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