नई दिल्ली। दुनिया के टॉप साइंटिस्ट्स के एक ग्रुप का कहना है कि कोरोना वायरस की उत्पत्ति किसी लैब से होने वाली थ्योरी को तब तक गंभीरता से लेना चाहिए, जब तक यह गलत साबित नहीं हो जाए। यानी चीन से वायरस के फैलाव का शक कायम है।
साल 2019 के अंत में चीन के वुहान शहर से दुनियाभर में फैले कोरोना वायरस ने 30 लाख से ज्यादा लोगों की जान ली है, जबकि करोड़ों लोग चपेट में आ चुके हैं। भारत-अमेरिका जैसे देशों को वायरस ने तकरीबन-तकरीबन घुटने के बल ला दिया है। दुनिया के टॉप साइंटिस्ट्स की इस टीम में कुल 18 लोग शामिल हैं, जिन्होंने वायरस के बारे में अहम जानकारियां दीं। इस टीम में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में क्लीनिकल माइक्रोबायोलॉजिस्ट रवींद्र गुप्ता, फ्रेड हचिंसन कैंसर रिसर्च सेंटर में इवॉल्यूशन ऑफ वायरस की स्टडी करने वालीं जेसी ब्लूम भी हैं। इन लोगों ने कहा, ''महामारी की उत्पत्ति को निर्धारित करने के लिए अभी और जांच की आवश्यकता है।''
स्टैनफोर्ड में माइक्रोबायोलॉजी के प्रोफेसर डेविड रेलमैन सहित वैज्ञानिकों ने एक पत्रिका में कहा, ''वायरस के किसी लैब और ज़ूनोटिक स्पिलओवर, दोनों से अचानक बाहर निकलने के सिद्धांत बने हुए हैं।'' लेखकों ने पत्रिका में आगे बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की वायरस के उत्पत्ति के सिलसिले में की गई जांच में इस बात को लेकर संतुलित विचार नहीं किया गया कि यह लैब से भी आया हो सकता है।'' मालूम हो कि अपनी फाइनल रिपोर्ट में, चीनी साइंटिस्ट्स के साथ संयुक्त रूप से लिखी गई, एक डब्ल्यूएचओ की अगुवाई वाली टीम, जिसने जनवरी और फरवरी में वुहान और उसके आसपास चार सप्ताह बिताए थे, ने कहा था कि वायरस संभवतः चमगादड़ से मनुष्यों में किसी अन्य जानवर के जरिए से आया हो सकता है। हालांकि, लैब से बाहर आने वाली थ्योरी की संभावना नहीं ही है।