काबुल. तालिबान के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के बीच लोकल मुजाहिद्दीन लड़ाकों ने कुछ तालिबानियों को मार गिराया और उसे पुल-ए-हेसार, देह सलाह और बानु जिलों से पीछे हटने पर मजबूर कर दिया है. ये सभी जिले बागलान प्रांत के हैं.
खैर मोहम्मद अंद्राबी के नेतृत्व में लड़ाकों ने इन इलाकों में कब्जा करने का दावा किया है. हालांकि इस पर तालिबान की तरफ से कोई बयान नहीं आया है.अफगान न्यूज एजेंसी असवाका के अनुसार, दोनों पक्षों के इस भिड़ंत में कई तालिबानी घायल या मारे भी गए. मुजाहिदीन लड़ाकों ने कहा कि वे दूसरे जिलों में भी आगे बढ़ रहे हैं. उन्होंने कहा कि तालिबान ने आम लोगों की भावनाओं के तहत काम नहीं किया. न्यूज एजेंसी द्वारा जारी वीडियो में लोग अफनागिस्तान के झंडे को लहराते हुए देखे जा रहे हैं.
पुल-ए-हेसार जिला काबुल के उत्तर में स्थित और यह पंचशीर घाटी के करीब है. पंचशीर घाटी में तालिबान के खिलाफ विरोध सबसे ज्यादा और मजबूत है. अफगानिस्तान का ये प्रांत ऐसा है, जहां आज तक तालिबान कब्जा नहीं जमा सका है. ये इलाका है नॉर्दन अलायंस के पूर्व कमांडर अहमद शाह मसूद का गढ़ पंजशीर घाटी. 90 के दशक में भी जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया था, तब भी पंजशीर पर वो अपनी हुकूमत नहीं थोप पाया था.
खुद को कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित कर चुके अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह भी पंजशीर से ही ताल्लुक रखते हैं और काबुल में तालिबान के कब्जे के बाद से वो यहीं रह रहे हैं. सालेह ने गुरिल्ला कमांडर अहमद शाह मसूद के साथ नब्बे के दशक में कई लड़ाईयां लड़ीं. माना जा रहा है कि सालेह और अहमद मसूद पंजशीर में तालिबान से मुकाबले के लिए गुरिल्ला मूवमेंट फोर्स तैयार कर रहे हैं.
हाल ही में पंजशीर के कई इलाकों में मसूद के नॉर्दन अलायंस के झंडों के साथ गाड़ियों और लड़ाकों का काफिला देखा गया. साथ ही अवाम में एकजुटता के लिए अफगानिस्तान के झंडे लगाकर भी नॉर्दन अलायंस के लड़ाकों ने गश्त की. अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद भी तालिबान का डटकर मुकाबला करते हुए अपने पिता के ही रास्ते पर हैं. अहमद ने लंदन के किंग्स कॉलेज से वॉर स्टडीज की पढ़ाई की है. 2016 में अफगानिस्तान लौटे अहमद ने 2019 में राजनीति में एंट्री की और वे पंजशीर में मिलिशिया फोर्स की कमान संभालते हैं.