क्लाइमेट का हाल बेहाल-10 साल में 16 प्रतिशत बढ़ा गैस उत्सर्जन
दुनिया में गैस उत्सर्जन में हो रही बढोतरी के लिए कोयला, पेट्रोल, डीजल और सीमेंट उत्पादन की प्रमुख भूमिका को वैज्ञानिकों ने मुख्य कारण बताया है।
टैक्सास। टैक्सास राज्य में भयानक बर्फीले तूफान ने अमेरिका की विराट ऊर्जा समस्याओं को सामने रखा है। अमेरिका में मौसम के भीषण तेवरों से जुड़ी घटनाएं बढ़ी हैं। टैक्सास में गैस से चलने वाले बिजलीघर, परमाणु रिएक्टर और हवा से बिजली बनाने वाले टर्बाइन तक ठप पड़ गए थे। लंबे ब्लैकआउट की स्थिति बन गई थी। इस घटना ने अमेरिका में स्वच्छ और अधिक टिकाउ ग्रिड की जरूरत पर जोर दिया है। अमेरिका विश्व में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में दूसरे स्थान पर है। दूसरी ओर वह जलवायु संबंधी नीतियों, टेक्नोलॉजी और नेतृत्व के मामले में आगे है। वहां अगले दस सालों में जो कुछ होगा उसका प्रभाव दुनिया पर पड़ेगा। उसे ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में बड़ी भूमिका निभाने वाले कोयला आधारित बिजलीघरों को रोकने के लिए वैश्विक पहल करनी होगी। चीन के बैंकों ने दूसरे देशों में ऐसे बिजलीघरों के लिए अरबों रुपए दिए हैं।
अमेरिका के लिए समय कम है। दुनिया में जीवाश्म ईंधन और सीमेंट उत्पादन से गैसों का उत्सर्जन 2019 में 2009 के मुकाबले 16ः अधिक रहा। तापमान में बढ़ोतरी को 2 डिग्री सेल्यियस से कम सीमित रखना भी मुश्किल हो सकता है। कार्बन से छुटकारा पाने के लिए विश्व के दस साल तक हर साल 7.6ः उत्सर्जन कटौती की जरूरत है। यह 2020 से बहुत कम है जब कोविड-19 के कारण तेल और कोयले की मांग कम हो गई थी।
अमेरिका में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में गिरावट पर उम्मीदें कायम हैं। रिपब्लिकन पार्टी किसी भी तरह की पहल के खिलाफ है लेकिन लोग जलवायु परिवर्तन से चिंतित हैं। एक सर्वे के अनुसार 60 प्रतिशत से अधिक लोग सोचते हैं कि सरकार इस दिशा में बहुत कम उपाय कर रही है। ऐसा सोचने वाले लोगों में काफी युवा रिपब्लिकन समर्थक हैं।
अमेरिका ने यदि कार्बन उत्सर्जन घटाने के लिए निर्णायक कदम नहीं उठाए तो इससे बड़े खतरे खड़े होंगे। क्लीन एनर्जी की नई अर्थव्यवस्था में अमेरिका पिछड़ जाएगा। सोलर पैनलों और बैटरियों के उत्पादन में चीन का दबदबा है। उसने इन्हें बनाने के लिए जरूरी खनिजों की सप्लाई के वास्ते दूसरे देशों में खदानें ली हैं। यूरोप ने स्वच्छ ऊर्जा उद्योगों को बढ़ाने के लिए अच्छा काम किया है। उसकी योजना उन देशों के आयात पर टैक्स लगाने की है जो कार्बन उत्सर्जन कम नहीं कर रहे हैं। पहल न करने के कारण अमेरिका जलवायु परिवर्तन के संबंध में वैश्विक प्रभाव डालने से चूक जाएगा।
दुर्भाग्यवश अमेरिका की जलवायु संबंध कार्रवाई में विश्वसनीयता नहीं है। ट्रम्प पेरिस जलवायु समझौते से हट गए थे। हालांकि, उनसे पहले भी इस मामले में देश का रिकॉर्ड कमजोर रहा है। पूर्व राष्ट्रपति जार्ज बुश ने क्योटो जलवायु समझौता लागू करने से इनकार कर दिया था। संसद ने 2009 के बाद किसी महत्वपूर्ण जलवायु कानून और प्रस्ताव पर विचार नहीं किया है। आज स्थिति अलग है।
कार्बन शून्य रणनीति अपनाने के लिए सबसे उत्साहजनक बात है कि बीते दस सालों में हवा और सूर्य से बिजली बनाने की लागत 70ः और 90ः गिरी है। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के जीवाश्म ईंधन अपनाने के बावजूद अमेरिका में अच्छी दर से कार्बन उत्सर्जन घटा है। आधे से अधिक राज्यों स्वच्छ एनर्जी को आगे बढ़ा रहे हैं। बाइडेन इसे राष्ट्रीय स्तर पर ले जाना चाहते हैं। प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता कहते हैं, ऐसा करने के लिए अगले दशक में लगभग 18 लाख करोड़ रुपए से अधिक अतिरिक्त निवेश की जरूरत पड़ेगी। अरबपति बिल गेट्स ने एक नई किताब में लिखा है कि एनर्जी स्टोरेज, आधुनिक परमाणु रिएक्टरों से लेकर कांक्रीट बनाने की साफ-सुथरी टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में रिसर्च जरूरी है।