आपराधिक मामला छुपाने वाले को नियुक्ति का अधिकार नहीं : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2021-09-18 04:00 GMT

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अपने खिलाफ लंबित आपराधिक मामले में कभी झूठी जानकारी देने वाला या तथ्य को दबाने वाला कर्मचारी सेवा में नियुक्ति का हकदार नहीं है. शीर्ष न्यायालय ने राजस्थान हाईकोर्ट के 2019 के उस फैसले को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें एक कर्मचारी को सेवा से बर्खास्त करने के आदेश को रद्द कर दिया गया था.

नियुक्ति के लिए आवेदन सौंपने के वक्त कर्मचारी ने अपने खिलाफ लंबित आपराधिक मामले का खुलासा नहीं किया था. न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा कि यहां सवाल यह नहीं है कि क्या कर्मचारी तुच्छ प्रकृति के विवाद में संलिप्त है और क्या वह इसके बाद बरी हुआ है या नहीं, बल्कि यह ''विश्वास'' के बारे में है.

कोर्ट का यह फैसला नियोक्ता राजस्थान राज्य विद्युत प्रसारण निगम लिमिटेड की एक याचिका पर आया है, जिसने बर्खास्तगी आदेश को रद्द करने के हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी. शीर्ष अदालत ने कहा कि सवाल ऐसे कर्मचारी की विश्वसनीयता और विश्वसनीयता का है, जिसने नौकरी के शुरुआती दौर में किसी पद के लिए आवेदन करते समय गलत बयान दिया हो या आपराधिक मामले में शामिल होने के तथ्य को दबाया हो.

ऐसी स्थिति में, जहां नियोक्ता को लगता है कि एक कर्मचारी जिसने प्रारंभिक चरण में ही गलत बयान दिया है, सच्चाई का खुलासा नहीं किया है या भौतिक तथ्यों को छुपाया है, उसे सेवा में जारी नहीं रखा जा सकता है. क्योंकि ऐसे कर्मचारी पर भविष्य में भी भरोसा नहीं किया जा सकता है. नियोक्ता को ऐसे कर्मचारी को रखने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है.

संबंधित मुद्दे पर शीर्ष अदालत द्वारा पहले दिए गए कई फैसलों का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा कि ऐसा कर्मचारी नियुक्ति का दावा नहीं कर सकता है या अधिकार के रूप में सेवा में बना नहीं रह सकता है. शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए कहा कि बहाली का आदेश "पूरी तरह से अस्थिर और अनुचित" था. पीठ ने अपने फैसले में कहा कि नियोक्ता ने अक्टूबर 2013 में विज्ञापन जारी कर तकनीकी सहायक के पद के लिए आवेदन मांगे थे, जिसके बाद उस व्यक्ति ने इसके लिए आवेदन किया था.

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