यूनियन कार्बाइड का 337-टन जहरीला कचरा 40 साल बाद हटा

-भोपाल से 250 किमी दूर पीथमपुर ले गए, कंटेनर निकालने आगे-पीछे 2-2 किमी ट्रैफिक रोका

Update: 2025-01-02 08:25 GMT

भोपाल । भोपाल की यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री  का 337 मीट्रिक टन जहरीला कचरा आखिरकार 40 साल बाद हट गया। भोपाल से बुधवार रात 9 बजे कचरे से भरे 12 कंटेनर हाई सिक्योरिटी के बीच पीथमपुर के लिए रवाना किए गए। कंटेनर आष्टा टोल पर पहुंचे तो 3 किलोमीटर लंबा जाम लग गया। 250 किमी का सफर 8 घंटे में तय कर सुबह 5 बजे सभी कंटेनर पीथमपुर के आशापुरा गांव स्थित रामकी एनवायरो फक्टरी पहुंचे। यहां इस कचरे को जलाया जाएगा। यहां भी रातभर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था रही। इस बीच ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया। कंटेनर निकालने के लिए आगे-पीछे 2 किमी तक ट्रैफिक रोका गया। कोहरे के कारण भी सफर थोड़ा मुश्किल रहा। कंटेनर्स के आगे पुलिस की 5 गाड़ियां थीं। 100 पुलिसकर्मी तैनात किए गए थे। आष्टा के अलावा भी कुछ जगह जाम के हालात बने। 20 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद भोपाल से ये जहरीला कचरा हटाया गया। इससे यूनियन कार्बाइड परिसर के 3 किलोमीटर दायरे की 42 बस्तियों का भूजल प्रदूषित हो चुका है। कचरे की शिफ्टिंग की प्रोसेस रविवार दोपहर से शुरू हुई थी। 4 दिन बैग्स में 337 मीट्रिक टन कचरा पैक किया गया। मंगलवार रात से इसे कंटेनर्स में लोड करना शुरू किया। बुधवार दोपहर तक प्रोसेस पूरी कर ली गई और रात में इसे पीथमपुर रवाना किया गया। दरअसल, हाईकोर्ट ने 6 जनवरी तक इस जहरीले कचरे को हटाने के निर्देश दिए थे। 3 जनवरी यानी शुक्रवार को सरकार को हाईकोर्ट में रिपोर्ट पेश करना है। कचरा ले जाने वाले ये खास कंटेनर्स की स्पीड लगभग 40 से 50 किमी प्रति घंटा की स्पीड थी। रास्ते में कुछ देर के लिए रोका भी जा रहा था। कंटेनर्स के साथ पुलिस सुरक्षा बल, एम्बुलेंस, फायर ब्रिगेड और क्विक रिस्पॉन्स टीम मौजूद रही। हर कंटेनर में दो डन्न्ाइवर थे। एमपी में औद्योगिक इकाइयों में निकलने वाले रासायनिक और अन्य अपशिष्ट के निष्पादन के लिए धार जिले के पीथमपुर में एकमात्र प्लांट है। यहां पर कचरे को जलाने काम किया जाता है। यह प्लांट सेंटन्न्ल पॉल्यूशन कण्ट्रोल बोर्ड (CPCB) के दिशा-निर्देशानुसार संचालित है।

पीथमपुर स्थित इंसीरेनेटर में 13 अगस्त 2015 को भी यूनियन कार्बाइड से 10 मीटिन्न्क टन जहरीला कचरा निष्पादन के लिए भेजा गया था। तब ट्राइयल रन के तौर पर 3 ​दिन इसे जलाया गया। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, ट्राइयल रन के दौरान इंसीरेनेटर में हर घंटे 90 किलो कचरा जलाया गया था। इसी ट्रायल रन रिपोर्ट के आधार पर हाईकोर्ट ने अब राज्य सरकार को यूनियन कार्बाइड कारखाने में रखे 337 मीट्रिक टन जहरीले कचरे का निपटान पीथमपुर में करने के निर्देश दिए हैं। जहरीला कचरा भरते हुए विशेष सावधानी बरती गई। फैक्ट्री में 3 जगह एयर क्वॉलिटी की मॉनिटरिंग के लिए उपकरण लगाए गए। इनसे पीएम 10 और पीएम 2.5 के साथ नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाईऑक्साइड की जांच की गई। कचरा जिस स्थान पर रखा था, उस इलाके की धूल भी कचरे के साथ कंटेनरों के जरिए भेजी गई है। फैक्ट्री के अंदर 337 टन जहरीला कचरा थैलियों में रखा था। इसे खास जंबो बैग में पैक किया गया। ये एचडीपीई नॉन रिएक्टिव लाइनर के बने हैं। इसके मटेरियल में कोई रिएक्शन नहीं हो सकता। बैग में कचरा भरने के लिए 50 से ज्यादा मजदूरों को लगाया गया। ये सभी पीपीई किट पहने रहे। मजदूरों की टीम को हर 30 मिनट में बदला गया। जैसे ही वे पीपीई किट उतारते, उनका हेल्थ चेकअप किया जाता था। अस्थायी अस्पताल में डॉक्टर्स की टीम मौजूद रही। यहां पर उनके खाना-खाने और नहाने तक के इंतजाम किए गए थे। यहां पर मजदूर और अफसरों ने जिन बोतलों में पानी पीया, उसे भी ले जाया गया। कंटेनर को भेजने से पहले वजन हुआ। पीथमपुर में पहुंचने पर भी वजन किया जाएगा।

पीथमपुर में कचरे को रखने के लिए लकड़ी का प्लेटफॉर्म बनाया गया है। यह प्लेटफार्म जमीन से 25 फीट ऊपर है। इस कचरे को कब जलाना है, यह फैसला सीपीसीबी के वैज्ञानिकों की टीम करेगी। किस मौसम में, कितने तापमान पर और कितनी मात्रा में जलाया जाए, यह फैसला लेने से पहले सैंपल टेस्टिंग भी होगी। पहले 37 टन कचरा जलाया जाएगा। रामकी एनवायरो में 90 किलोग्राम प्रति घंटे की स्पीड से कचरे को जलाने में 153 दिन यानी 5 महीने 1 दिन का समय लगेगा। 270 किलोग्राम प्रति घंटे की स्पीड से नष्ट करते हैं, तो इसे खत्म करने में 51 दिन का वक्त लगेगा। भोपाल गैस त्रासदी में 3 हजार से ज्यादा लोग मौके पर मारे गए थे। 30 हजार से ज्यादा लोगों ने बाद में दम तोड़ा। त्रासदी 40 साल 1 महीने पहले 2-3 दिसंबर 1984 की रात हुई थी। गूगल सर्च इंजन भी मानता है कि दुनिया में इससे पहले और इसके बाद आज तक ऐसा कोई भी इंडस्ट्रियल डिजास्टर नहीं हुआ है। इस घटना को करीब से देखने वाले और कवर करने वाले बताते हैं कि लाशें ही लाशें थीं, जिन्हें ढोने के लिए गाड़ियां कम पड़ गईं। चीखें इतनी कि लोगों को आपस में बातें करना मुश्किल हो रहा था। धुंध इतनी कि पहचानना ही चौलेंज था उस रात।

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