वॉशिंगटन। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने घोषणा की है कि 1 अक्टूबर 2025 से ब्रांडेड और पेटेंटेड दवाओं पर 100% टैरिफ लगाया जाएगा। हालांकि, वे कंपनियां जो अमेरिका में दवा निर्माण का कारखाना स्थापित कर रही हैं या जिनके प्लांट का निर्माण कार्य जारी है, उन पर यह नियम लागू नहीं होगा।
इससे पहले ट्रम्प प्रशासन ने भारत पर 50% टैरिफ लगाया था, जो 27 अगस्त से प्रभावी हो चुका है। इस शुल्क का असर भारतीय कपड़ा, जेम्स-ज्वेलरी, फर्नीचर और सी-फूड जैसे उत्पादों के निर्यात पर पड़ा, हालांकि दवाओं को फिलहाल इस दायरे से बाहर रखा गया था।
राष्ट्रपति ट्रम्प ने स्पष्ट किया कि अमेरिका में प्लांट लगाने वाली विदेशी दवा कंपनियों को छूट दी जाएगी। यानी यदि निर्माण कार्य शुरू हो चुका है तो उन दवाओं पर नया टैक्स लागू नहीं होगा।
भारत पर असर
भारत अमेरिकी बाज़ार में जेनेरिक दवाइयों का सबसे बड़ा सप्लायर है। वर्ष 2024 में भारत ने अमेरिका को लगभग 8.73 अरब डॉलर (करीब 77 हजार करोड़ रुपए) की दवाइयां निर्यात की थीं, जो भारत के कुल दवा निर्यात का लगभग 31% हिस्सा था। अमेरिका में लिखी जाने वाली हर 10 प्रिस्क्रिप्शन में से करीब 4 दवाइयां भारतीय कंपनियों की होती हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में अमेरिका के हेल्थकेयर सिस्टम ने जेनेरिक दवाइयों की वजह से लगभग 219 अरब डॉलर की बचत की। 2013 से 2022 के बीच यह आंकड़ा 1.3 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गया। भारत की बड़ी फार्मा कंपनियां जैसे डॉ. रेड्डीज, सन फार्मा, ल्यूपिन न सिर्फ जेनेरिक बल्कि कुछ ब्रांडेड दवाएं भी अमेरिका में बेचती हैं।
ब्रांडेड और जेनेरिक दवाओं का अंतर
ब्रांडेड दवा:
किसी कंपनी की मूल खोज पर आधारित होती है। 20 साल तक पेटेंट सुरक्षा मिलती है। महंगी होती है क्योंकि इसमें रिसर्च व डेवलपमेंट की लागत शामिल होती है।
जेनेरिक दवा:
ब्रांडेड दवा का पेटेंट खत्म होने के बाद बनाई जाती है। समान फॉर्मूले पर आधारित होती है। रिसर्च लागत न होने के कारण कीमत 80–90% तक सस्ती होती है।