देश में संचार साथी मोबाइल ऐप को लेकर राजनीतिक विवाद तेज हो गया है। सरकार द्वारा नए स्मार्टफोनों में इस ऐप को अनिवार्य रूप से प्री-इंस्टॉल किए जाने और इसे डिसेबल न किए जा सकने की खबरों के बाद विपक्ष ने गंभीर आपत्ति जताई है। कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी समेत विपक्षी नेताओं ने आरोप लगाया है कि यह नागरिकों की प्राइवेसी पर सीधा हमला है और सरकार इसे ‘जासूसी ऐप’ के रूप में उपयोग करना चाहती है। वहीं केंद्र सरकार ने इन आरोपों को पूरी तरह खारिज करते हुए कहा है कि ऐप केवल साइबर ठगी रोकने और डिजिटल सुरक्षा मजबूत करने के लिए बनाया गया है।
सरकार ने 17 जनवरी 2025 को संचार साथी ऐप लॉन्च किया था। यह ऐप यूज़र्स को खोए या चोरी हुए फोन को ब्लॉक करने, IMEI वेरिफिकेशन, मोबाइल नंबरों की जांच और फ्रॉड कॉल/मैसेज की रिपोर्टिंग जैसी सुविधाएँ देता है। सरकार का कहना है कि बढ़ते साइबर अपराधों को रोकने के लिए यह ऐप आवश्यक है।
विवाद तब बढ़ा जब 1 दिसंबर 2025 को आई एक सरकारी प्रेस रिलीज़ में कहा गया कि सभी नए स्मार्टफोन में संचार साथी ऐप प्री-इंस्टॉल रहेगा और इसे हटाया नहीं जा सकेगा। इसके बाद विशेषज्ञों द्वारा सोशल मीडिया पर ऐप की परमिशन लिस्ट साझा की गई, जिसमें कैमरा, माइक्रोफोन, लोकेशन, कॉल लॉग, मैसेज और स्टोरेज जैसी विस्तृत अनुमतियां दिखाई गईं। इन अनुमतियों ने उपयोगकर्ताओं की प्राइवेसी को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए।
कांग्रेस नेता के.सी. वेणुगोपाल ने इसे निजता के अधिकार का उल्लंघन बताया, जबकि प्रियंका गांधी ने कहा कि यह सरकार की नागरिकों की निगरानी करने की मंशा को उजागर करता है। TMC सांसद महुआ मोइत्रा ने भी आरोप लगाया कि सरकार फ्रॉड रोकने के नाम पर हर कॉल और संदेश तक पहुंच चाहती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि ऐप द्वारा मांगी गई कई अनुमतियां इसके कोर फंक्शनों के लिए आवश्यक नहीं हैं। IMEI चेक, खोए फोन की रिपोर्टिंग या फ्रॉड अलर्ट के लिए कैमरा, माइक और कीबोर्ड एक्सेस तकनीकी रूप से अनिवार्य नहीं है। ऐप का डेटा सीधे डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्युनिकेशन (DoT) के सर्वर पर जाता है, जहां इसे “कानूनी आवश्यकता” पर एजेंसियों के साथ साझा किया जा सकता है। प्राइवेसी विशेषज्ञों के अनुसार, डेटा कितने समय तक रखा जाएगा, इसके बारे में ऐप की पॉलिसी में स्पष्ट जानकारी नहीं है।
इस पूरे विवाद के बीच दूरसंचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सफाई दी कि संचार साथी ऐप को अनइंस्टॉल किया जा सकेगा। उन्होंने कहा कि ऐप अनिवार्य रूप से इंस्टॉल होगा, लेकिन उपयोगकर्ता इसे चाहें तो हटा सकेंगे।
हालांकि विशेषज्ञों और विपक्ष का कहना है कि ऐप की व्यापक परमिशन और सेंट्रलाइज्ड सर्वर मॉडल इसे संभावित निगरानी उपकरण बना देता है।
इधर मोबाइल कंपनियों को 90 दिनों के भीतर अपने नए उपकरणों में ऐप प्री-इंस्टॉल करने और 120 दिनों में कंप्लायंस रिपोर्ट देने के निर्देश दिए गए हैं। Apple के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती बताई जा रही है, क्योंकि वह सरकारी ऐप्स को प्री-इंस्टॉल करने की अनुमति अपनी ग्लोबल पॉलिसी में नहीं देता।
प्राइवेसी समूहों, विपक्षी दलों और तकनीकी विशेषज्ञों ने संकेत दिया है कि इस मामले को लेकर जल्द ही सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट में याचिकाएं दाखिल हो सकती हैं।
उधर सरकार का कहना है कि यह पूरा कदम केवल डिजिटल सुरक्षा, फ्रॉड नियंत्रण और उपभोक्ता हित में उठाया गया है, और जासूसी के आरोप पूरी तरह निराधार हैं।






