ईडी की कार्रवाई से खुलने लगी गबन की परतें

-मेरठ के साकेत निवासी शारदा ग्रुप के आदित्य व आशीष गुप्ता से जुड़ी एक कंपनी ने एक महीने पहले मेरठ में 91 करोड़ की जमीन खरीदी है। जहां पर ग्रुप हाउसिंग बनाने की तैयारी है। माना यह जा रहा है कि यह सौदा भी जांच के दायरे में आ सकता है।

Update: 2024-09-20 06:55 GMT

मेरठ। प्रवर्तन निदेशालय ;ईडीद्ध की कार्रवाई के बाद हैसिंडा प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड के गबन की परतें खुलने लगी हैं। नोएडा से होते हुए मेरठ और चंडीगढ़ तक कड़ी जुड़ रही हैं। प्रमोटरों को बिना किसी राशि के निवेश के जमीन आवंटित कर दी गई। घर खरीदारों से 636 करोड़ रुपये एकत्र किए गए। इसमें से लगभग 190 करोड़ रुपये का गबन किया। इस प्रोजेक्ट से जुड़े मेरठ के साकेत निवासी शारदा ग्रुप के आदित्य व आशीष गुप्ता से जुड़ी एक कंपनी ने एक महीने पहले मेरठ में 91 करोड़ की जमीन खरीदी है। जहां पर ग्रुप हाउसिंग बनाने की तैयारी है। माना यह जा रहा है कि यह सौदा भी जांच के दायरे में आ सकता है। नोएडा में हैसिंडा प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के लोटस 300 प्रोजेक्ट में 330 फ्लैट बनाने के लिए निवेशकों से 636 करोड़ रुपये जुटाए गए थे। आरोप है कि कंपनी ने लोगों को फ्लैट देने के बजाय प्रोजेक्ट की सात एकड़ भूमि अन्य बिल्डर को विक्रय कर दी थी। इसके बाद निवेशकों ने दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध अनुसंधान शाखा में शारदा ग्रुप के खिलाफ केस कराए थे। मामला कोर्ट पहुंचा जहां से ईडी को जांच के आदेश हुए। शारदा ग्रुप के मालिकों के मेरठ साकेत स्थित बंगला-192ए पर मंगलवार को ईडी ने इसी कड़ी में कार्रवाई की थी। रिठानी में उनके दफ्तर और गगोल रोड की फैक्टरी में भी जांच की। जिसमें पांच करोड़ रुपये के हीरे भी मिले। बताया गया है कि मेरठ के पूर्व कमिश्नर मोहिंदर सिंह की भूमिका जांच चल रही है, जोकि नोएडा के चेयरमैन और सीईओ भी रह चुके है। मेरठ में कमिश्नर रहने के दौरान गुप्ता बंधु से गठजोड़ होना बताया गया। ईडी ने गुप्ता बंधु का रिकॉर्ड खंगाला, जिसमें पिछले महीने 91 करोड़ रुपये में मेरठ में जमीन खरीदने की बात सामने आई है। जिस कंपनी ने जमीन खरीदी है वह इसी परिवार से जुड़ी बताई जा रही है। जमीन पर ग्रुप हाउसिंग को विकसित करने की तैयारी है। शहर की विभिन्न सुविधाओं से युक्त कालोनी बसाने का भी दावा किया जा रहा था। इसके अलावा दिल्ली-देहरादून हाईवे पर कई सौ बीघा जमीन खरीद का भी एक मामला सामने आया है। मोहिंदर की बसपा सरकार में तूती बोलती थी। वर्ष 2007 से लेकर 2012 तक उन्होंने नोएडा में सीईओ, चेयरमैन और चीफ सीईओ के पद पर कई फैसले लिए। किसी भी फैसले पर शासन की ओर से कोई आपत्ति नहीं होती थी। यही वजह है कि बिल्डरों से 10 प्रतिशत राशि लेकर रेवड़ी की तरह जमीन बांटी गई, जो अब करीब 28 हजार करोड़ के बकाये तक पहुंच चुकी है। पुराना घाव अब तक नहीं भरा है। यही वजह है कि नोएडा में उनकी तैनाती के कई मामलों में जांच अभी भी चल रही है। वहीं, आम्रपाली समूह का साथ देने पर मोहिंदर सिंह पर सवाल उठे थे। इस मामले में उन्हें एजेंसियों के जांच के नोटिस भी भेजे गए थे। इस मामले में कई अन्य अधिकारी भी रडार पर रहे। इसमें बताया गया था कि आम्रपाली को नियमों से इतर जमीन दी गई। वहीं, ट्विन टावर मामले में खरीद योग्य एफएआर दिलाने के मामले में भी सवाल उठे। 26 आरोपी अधिकारियों की लिस्ट में मोहिंदर सिंह का नाम है। नोएडा में दलित प्रेरणा स्थल के निर्माण के दौरान लोकल फंड आडिट की रिपोर्ट में सवाल उठाए गए थे। उस समय नोएडा प्राधिकरण में मोहिंदर थे। रिपोर्ट में बताया गया था कि यूपी निर्माण निगम के साथ प्राधिकरण का 84 करोड़ का एमओयू कराया गया था। इसी फंड से दलित प्रेरणा स्थल का निर्माण होना था, लेकिन इसके निर्माण में जमकर पैसे खर्च किए गए। आलम यह रहा कि इसे बनाने में करीब 1000 से 1400 करोड़ रुपये तक खर्च हुए। यह नियम के इतर किए गए। इसकी जांच अभी भी चल रही है। यह मामला हाईकोर्ट में चल रहा था।

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