शुभ योग में नवरात्र प्रारम्भ, मंदिरों में गूंजे माता रानी के जयघोष
घरों में गज पर सवार होकर विराजी मां दुर्गा, शहर और देहात के देवी मंदिरों में उमड़ी माता के भक्तों की भीड़
मुजफ्फरनगर। रविवार को शारदीय नवरात्र के शुभारंभ अवसर पर जिले में शहर से लेकर गांव देहात तक देवी मंदिरों में धर्म की गंगा बहती नजर आई। माता के भक्तों द्वारा धूमधाम से नवरात्र पर्व मनाया जा रहा है। शहर के देवी मंदिरों में सुबह 5 बजे से ही देवी के भक्तों की लंबी कतारें लगनी शुरू हो गई थी, जिनमें पुरुषों के साथ ही महिलाओं और बच्चों की भी भरपूर संख्या नजर आई। माता के भक्त उनके पूजन दर्शन के लिए सुबह से मंदिरों में पहुंचते दिखे। देहात के साथ ही शहर में चारों ओर देवी मंदिरों में भारी भीड़ दिखी। जय माता दी के जयकारों से देवी मंदिर गूंजते रहे। शहर में गांधी कालोनी स्थित वैष्णो देवी मंदिर में भक्तों की अपार भीड़ दिखाई दी। इस बार नवरात्र में मां दुर्गा शेर की सवारी छोड़ गज पर सवार होकर घरों में विराजमान हुई। इसके साथ ही इस बार बुधादित्य योग भी बन रहा है। यह शुभ संयोग है। नवरात्र में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती सहित दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाएगी।
हिंदू धर्म की परम्परा के अनुसार नवरात्रि में पूजा स्थल के पास जौ बोने की परंपरा है। इसके पीछे का कारण यह कि जौ को ब्रह्रा स्वरूप और पृथ्वी की पहली फसल जौ को माना गया है। मान्यता के अनुसार यदि नवरात्र रविवार या सोमवार से शुरू हो तो मां का वाहन हाथी होता है। यह अधिक वर्षा का भी संकेत देता है। यही शुभ संयोग बन रहा है। रविवार से नवरात्र शुरू होने के कारण मां दुर्गा गज पर सवार होकर घरों में विराजमान हो चुकी हैं। मान्यता है कि यदि नवरात्रि मंगलवार और शनिवार शुरू होती है तो मां का वाहन घोड़ा होता है। यह सत्ता परिवर्तन का संकेत देता है। गुरुवार या शुक्रवार से शुरू होने पर मां दुर्गा डोली में बैठकर आती हैं जो रक्तपात, तांडव, जन-धन हानि का संकेत बताता है। वहीं बुधवार के दिन से नवरात्र की शुरुआत होती है तो मां नाव पर सवार होकर आती हैं और अपने भक्तों के सारे कष्ट को हर लेती हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार निर्णय सिंधु के अनुसार नवरात्र पूजन द्विस्वभाव लग्न में करना शुभ होता है। मिथुन, कन्या, धनु तथा कुंभ राशि द्विस्वभाव राशि है। अतरू इसी लग्न में पूजा प्रारंभ करनी चाहिए। रविवार प्रतिपदा के दिन चित्रा नक्षत्र और वैधृति और विष्कुंभ योग होने के कारण यह शुभ होगा। धर्मशास्त्रों में कलश को सुख-समृद्धि(, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है।
रविवार को प्रथम नवरात्र के दौरान घरों से देवी मंदिरों तक भक्ति की गंगा बहती रही। घरों में माता की सांझी स्थापित करने के साथ भक्तों ने पूजा अर्चना की। घट और कलश स्थापित किये गये। पूजा के समय घी का दीपक जलाएं तथा उसका गंध, चावल, व पुष्प से पूजन किया गया। इसके साथ ही व्रत का दौर भी प्रारम्भ हो गया। व्रत से पाचन तंत्र मजबूत होता है। शरीर के विषैले पदार्थ बाहर निकलते हैं। बदलते मौसम में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने की आवश्यकता होती है। अच्छा खानपान सेहत के लिए लाभदायक होता है।