उन्होंने यह संकल्प लिया था कि मृत्यु के पश्चात उनका शरीर चिकित्सा क्षेत्र के विद्यार्थियों के अध्ययन एवं अनुसंधान हेतु दान कर दिया जाए
मुजफ्फरनगर। जीवनभर न्याय, समाज और मानवता की सेवा में जुटे रहने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता बाबू जयप्रकाश आज़ाद ने मृत्यु के बाद भी लोगों को समाज की सेवा के प्रति सकारात्मक रहने की एक अद्भुत प्रेरणा दी है। 95 वर्ष की आयु में उनके निधन के उपरांत परिवार ने उनकी अंतिम इच्छा का सम्मान करते हुए उनका पार्थिव शरीर मेडिकल शिक्षा और अनुसंधान के लिए दान कर दिया। यह कदम न केवल समाज को संदेश देता है बल्कि चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में भी बड़ा योगदान है।
जिला बार संघ के पूर्व अध्यक्ष और प्रदेश की न्यायिक व सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय भूमिका निभाने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता बाबू जयप्रकाश आज़ाद का 95 वर्ष की आयु में शनिवार को निधन हो गया था। परिजनों के अनुसार अपने जीवन के दौरान उन्होंने यह संकल्प लिया था कि मृत्यु के पश्चात उनका शरीर चिकित्सा क्षेत्र के विद्यार्थियों के अध्ययन एवं अनुसंधान हेतु दान कर दिया जाए। उनकी इस इच्छा का सम्मान करते हुए रविवार सुबह गुरु राम राय मेडिकल कॉलेज, देहरादून से आई विशेषज्ञ टीम को परिजनों के द्वारा सुबह 9 बजे उनका पार्थिव शरीर विधिवत रूप से सौंप दिया गया।
परिजनों ने बताया कि बाबू जयप्रकाश आज़ाद मानवता और शिक्षा के लिए सदैव समर्पित रहे और जीवन के अंतिम क्षण तक समाजहित को सर्वाेपरि रखा।बाबू जयप्रकाश आज़ाद का परिवार भी शिक्षा और राष्ट्रीय सेवा से गहराई से जुड़ा रहा है। उनके बड़े बेटे डॉ. मनोज गुप्ता, एम्स ऋषिकेश के डीन रह चुके हैं, जबकि उनके दोनों बड़े भाई स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे। मूल रूप से चरथावल क्षेत्र के दूधली गांव के निवासी रहे जयप्रकाश आज़ाद ने अधिवक्ता जीवन में न्यायपालिका में उच्च आदर्श स्थापित किए और बार संघ के अध्यक्ष के रूप में भी अपनी अलग पहचान बनाई।
उनके निधन पर मुजफ्फरनगर के अधिवक्ता समुदाय, सामाजिक संगठनों और स्थानीय नागरिकों ने गहरा शोक व्यक्त किया। बार के वरिष्ठ सदस्यों ने कहा कि बाबू जयप्रकाश आज़ाद का जीवन और मृत्यु दोनों ही समाज के लिए प्रेरक रहे। शरीर दान करने का उनका निर्णय आगामी पीढ़ियों को न केवल चिकित्सा शिक्षा में मदद करेगा, बल्कि सामाजिक जागरूकता फैलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। वो जीवन और मृत्युकृदोनों ही अवस्थाओं में समाज के लिए उपयोगी बने रहने की प्रेरणा छोड़ गए हैं।






