राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने संघ की स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि अपने घरों में अपनी भाषा, परंपरा, वेशभूषा और संस्कृति बनाए रखना जरूरी है।

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि भाजपा और आरएसएस के बीच कोई मतभेद नहीं है। उनके अनुसार, विचारों में अंतर हो सकता है लेकिन मनभेद नहीं होता। भागवत ने स्पष्ट किया कि भाजपा सरकार में सब कुछ आरएसएस तय करता है, यह पूर्णतः गलत है। उनका कहना है कि लक्ष्य वही है, जो देश की भलाई के लिए है।
भागवत ने कहा कि संघ का हर सरकार के साथ अच्छा समन्वय है, न कि सिर्फ वर्तमान सरकार के साथ। उन्होंने यह भी कहा कि कहीं कोई झगड़ा नहीं है।
भागवत ने बताया कि संघ केवल उनकी मदद करता है जो सहायता मांगते हैं और उनके कार्य देश हित में होते हैं। उन्होंने कहा कि समाज के सभी वर्गों के लिए संघ काम करता है और कोई रोकावट होने पर वह उनकी इच्छा का सम्मान करता है।
संस्कार और परंपराओं के संरक्षण की चुनौती
प्रश्नोत्तर सत्र में भागवत ने कहा कि तकनीक और आधुनिकता शिक्षा के विरोधी नहीं हैं। उन्होंने बताया कि शिक्षा केवल जानकारी नहीं है, बल्कि व्यक्ति को सुसंस्कृत और जिम्मेदार बनाना इसका उद्देश्य है।
नई शिक्षा नीति (एनईपी) में पंचकोसीय शिक्षा शामिल है।
भारतीय ज्ञान परंपरा संघ का अभिन्न अंग रही है।
ऋषियों और आधुनिक वैज्ञानिकों के जीवन को बौद्धिक शिक्षा में शामिल किया जाता है।
शिक्षा और तकनीक का संतुलन
तकनीक और आधुनिकता शिक्षा के विरोधी नहीं हैं।
शिक्षा केवल जानकारी नहीं है; यह व्यक्ति को सुसंस्कृत और सामाजिक रूप से जिम्मेदार बनाने के लिए है।
नई शिक्षा नीति (एनईपी) में पंचकोसीय शिक्षा के प्रावधान शामिल हैं, जो सही दिशा में एक कदम हैं।