ताकि लाॅक डाउन पीडित मना सकें दिवाली
सरकार ने लाॅक डाउन में प्रभावित होने के बाद अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए इनकम टैक्स रिटर्ने, जीएसटी या फिर बैंकों की ईएमआई पर परिवहन विभाग उन वाहनों की टेंड एक्सटेंड करना भूल गई, जो कई माह से स्कूल बंदी के कारण पार्किंग में खड़े हैं।
सरकार ने तमाम सेवाओं और वर्गों को संकट से उबारने के लिए रियायतों की घोषणा की है, लेकिन परिवहन विभाग की अनदेखी को लेकर तमाम सवाल उठ रहे हैं।
लाॅक डाउन में स्थिति से सभी वर्ग बुरी तरह से प्रभावित हुए। सरकार ने लाॅक डाउन में प्रभावित होने के बाद अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए इनकम टैक्स रिटर्ने, जीएसटी या फिर बैंकों की ईएमआई पर परिवहन विभाग उन वाहनों की टेंड एक्सटेंड करना भूल गई, जो कई माह से स्कूल बंदी के कारण पार्किंग में खड़े हैं। ओएलएक्स पर टैक्सियां जो लाॅकडाउन व मंदी के कारण महीनों तक घर पर खड़ी रही और अब मंदी के परिपे्रक्ष में बहुत ही कम चल रही हैं। सरकार की तरफ से वाहन के परिवहन मानको द्वारा डीजल की गाड़ी की उम्र 10 साल व पेट्रोल की गाड़ी की उम्र 15 साल निर्धारित की गई है। उन वाहनों को अब दिक्कत आ रही है, जिनके 10 या 15 साल या तो समाप्त हो चुके हैं, या होने वाले है। क्या सरकार वाहनों की एक्सपायरी डेट को कुछ सालों तक बढ़ाया जाना अतार्किक समझती है। सवाल है कि सब चीजों पर छूट है तो वाहनों के इंश्योरेंस पर कोई छूट क्यों नहीं दी गई । ऐसे में उन लोगों को बहुत दिक्कत आ रही है, जिनकी गाड़ी स्कूल बंदी में पार्किंग में खड़ी है। यह गाड़ी मालिक पार्किंग का किराया भी दे रहे हैं और ऊपर से ईएमआई का भी बोझ। इन गरीब लोगों के सामने यह समस्या है कि स्कूल बंदी के कारण अभिभावक परिवहन फीस नहीं जमा करा रहे हैं और जमा भी क्यों करें। जब बच्चे स्कूल ही नहीं जा रहे, ऐसे में सवाल है कि सरकार ने अभी तक इन गरीब लोगों का दर्द क्यों नहीं समझा, इस समस्या पर कोई विकल्प क्यों नहीं तलाशा गया।
ऐसे में सवाल यह भी है, कि विद्यालय अभिभावकों से पूरी फीस वसूल कर रहा है, पर स्कूल वाहन चालको को विद्यालय की तरफ से भी कोई सहायता कोष उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है, स्कूल प्रबंधकों की तो चांदी कट रही है, स्कूल के मेंटेनेंस का सारा खर्चा बच रहा है, और पूरी फीस अभिभावकों से वसूल की जा रही है , तो क्या ऐसे में स्कूल मालिकों का यह कर्तव्य नहीं बनता, कि बच्चों को विद्यालय लाने ले जाने वाले वाहनों को भी भत्ते के रूप में कुछ पैसा दे, ताकि उनके परिवार में भी दिया जलता रहे।
पंडित अवतोष शर्मा (स्वतंत्र पत्रकार)