हार कर भी जीत गईं चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल

शासन की कार्यवाही के बाद भी विपक्षी खेमे में सन्नाटा, अंजू समर्थक मना रहे जश्न, 1031 दिन चली चेयरपर्सन के खिलाफ विपक्ष की लड़ाई, 189.35 पैसे प्रतिदिन के जुर्माने पर खत्म, हर बार विपक्ष मचाता रहा ‘अब गिरेगी गाज’ का शोर, शासन ने डीएम की रिपोर्ट को दी तरजीह, तीनों बिन्दुओं पर दोष साबित, कार्यवाही के बजाये सख्त नसीहत

Update: 2021-11-16 10:20 GMT

मुजफ्फरनगर। नगरपालिका परिषद् की चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल के खिलाफ शासन द्वारा लगाये गये 1.95 लाख रुपये के जुर्माने और रिकवरी आदेश को उनके खिलाफ कथित रूप से पालिका में वित्तीय अनियमितता और भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर 'गाज' गिराने की लड़ाई लड़ रहे विपक्षी खेमे की जीत के तौर पर देखा जा रहा है, लेकिन शासन का जो फैसला इस लम्बी लड़ाई के बाद आया है, उसको लेकर विपक्षी खेमा जीतकर कर भी हार गया और इस हार में भी चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल की जीत होने की चर्चाओं ने जोर पकड़ रखा है। चेयरपर्सन पर शासन की कार्यवाही का इंतजार कर रहे विपक्षी खेमे में शासन की चिट्ठी आने के बाद सन्नाटा है तो वहीं जुर्माना और रिकवरी की कार्यवाही के बाद भी चेयरपर्सन समर्थक जश्न के आलम में डूबे दिखाई दे रहे हैं। इसकी वजह यह है कि 1031 दिन चली इस लड़ाई में पूरा जोर लगाने के बाद भी विपक्ष चेयरपर्सन के खिलाफ केवल 189.35 रुपये प्रतिदिन का जुर्माना ही इस अवधि के लिए लगवा पाया है। जबकि तीनों बिन्दुओं की शिकायत में दोषी ठहराये जाने के बाद भी शासन द्वारा एक प्रकार से चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल को अभयदान देकर इस प्रकरण का पटाक्षेप किया।

नगरपालिका परिषद् में चेयरपर्सन के खिलाफ विपक्षी की लड़ाई की जीत आज कक्षा आठ की हिन्दी की पुस्तिका 'मंजरी' के एक अध्याय में शामिल लेखक सुदर्शन की उस कहानी को याद दिला रही है, जिसमें एक साधू अपना प्रिय और सुन्दर घोड़ा सुल्तान एक डाकू के छल-कपट से खो देने की हार के बाद भी जीत जाता है। 'हार की जीत' शीर्षक वाले एक अध्याय में साधू बाबा भारती और डाकू खड्ग सिंह की कहानी वाले इस पाठ में लेखक सुदर्शन ने बहुत ही प्रभावशाली ढंग से बताया है कि परोपकारियों और सज्जनों की यदि कहीं हार हो जाये तो यह उनकी जीत समान ही होता है।

इस कहानी जैसा ही परिणाम पालिका के इस प्रकरण में भी सामने दिखाई दे रहा है। 18 जनवरी 2019 को जन विकास सोसायटी के अध्यक्ष मौहम्मद खालिद ने चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल के खिलाफ वित्तीय अनियमितता बरतने, नियम विरु( कार्य करने और पालिका को वित्तीय क्षति देने जैसे तीन बिन्दुओं पर शासन को शिकायत कर कार्यवाही की मांग की। इसके बाद भाजपा सभासद राजीव शर्मा ने भी इसी प्रकार भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए शासन में शिकायत की। 18 जनवरी को चली यह लड़ाई 15 नवंबर 2021 को 1031 दिन में शासन के निर्णय के बाद पटाक्षेप तक पहुंची है। अपर मुख्य सचिव नगर विकास विभाग डा. रजनीश दुबे की ओर से जारी किए गए कार्यालय आदेश की प्रति 15 नवंबर की देर शाम चैयरपर्सन अंजू अग्रवाल को प्रशासनिक स्तर पर तामील कराई गई। इस आदेश पत्र में चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल के खिलाफ दो बार सुनवाई का अवसर दिये जाने के बाद भी शासन में पेश नहीं होने को लेकर नाराजगी, जिलाधिकारी सेल्वा कुमारी जे. की रिपोर्ट में उनके खिलाफ की गई संस्तुति और आरोपों में दोषी ठहराये जाने के साथ ही विपक्षी खालिद और राजीव शर्मा के आरोपों को सही ठहराये जाने जैसा सभी कुछ वर्णन चेयरपर्सन की हार को प्रदर्शित करता है, लेकिन जब कार्यवाही की बात आई तो शासन चेयरपर्सन को तीनों बिन्दुओं पर दोषयुक्त होने के बावजूद भी एक गंभीर चेतावनी और 1 लाख 95 हजार 223 रुपये का जुर्माना लगाकर रिकवरी करने के आदेश के साथ उनको अभयदान देता हुआ भी प्रतीत होता है।


अब प्रशासन द्वारा नगरपालिका अधिनियम की धारा 48 के अंतर्गत उनसे 1.95 लाख रुपये की वसूली कराई जाएगी। विपक्ष के पास इस जीत में केवल यही संतोष शेष रह गया, क्योकि इस जुर्माने के साथ शासन ने चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल को भविष्य में सचेत रहने की चेतावनी देते हुए प्रकरण को समाप्त कर दिया है। इसी के साथ अंजू अग्रवाल को राहत मिली है, जबकि भाजपा में रहते हुए भी उनके खिलाफ जिस प्रकार लगातार प्रचार हो रहा था कि शासन की ओर से उन पर बड़ी कार्रवाई होगी और 'अब गाज गिरेगी, तब गाज गिरेगी' का शोर भी थम गया। भाजपा का एक बड़ा धड़ा उनके विरु( कार्रवाई के लिए पैरवी कर रहा था। मगर शासन द्वारा लिए गए इस निर्णय से उनकी पैरवी को बड़ा धक्का लगा है और चेयरपर्सन हार कर भी इस लड़ाई में जीत गई है। 1031 दिन तक लड़ने वाले विपक्ष को सत्ता का साथ मिलने के बाद भी हताशा ही हाथ लगी है। लड़ाई की इस अवधि के आधार पर जुर्माना रकम का गुणा भाग करें तो चेयरपर्सन को इस लड़ाई में 189.35 रुपये प्रतिदिन की दर से ही इस लड़ाई का खर्च पड़ा है। यही कारण है कि हार के बाद भी चेयरपर्सन समर्थक जीत जैसी खुमारी में है। शासन द्वारा इस प्रकरण का पटाक्षेप करने से मायूस विपक्ष को अब हाईकोर्ट एक उम्मीद लग रहा है, वहीं चेयरपर्सन भी जुर्माना देने के बजाये शासन के आदेश के खिलाफ अपील की तैयारी में जुट गई हैं। 

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