भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत ने सरकारों की नीतियों पर उठाए सवाल, कहा-गांवों में गहरा रहा आर्थिक संकट
मुजफ्फरनगर। सांख्यिकी मंत्रालय की अर्धवार्षिक पत्रिका में प्रकाशित ताज़ा सर्वेक्षण ने ग्रामीण भारत की आर्थिक स्थिति पर चिंता की घंटी बजा दी है। रिपोर्ट के अनुसार, देश के ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 15 प्रतिशत परिवार किसी न किसी रूप में कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं। यह कर्ज कृषि कार्य, स्वास्थ्य खर्च, शिक्षा या सामाजिक दायित्वों के निर्वहन हेतु लिया गया है। सर्वेक्षण में यह भी उजागर हुआ कि आर्थिक दबाव के कारण ग्रामीण जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित रह जाता है, जिससे उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार की संभावनाएं सीमित हो जाती हैं।
इसी रिपोर्ट के हवाले से भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत ने सरकारों की आर्थिक नीतियों पर सवाल उठाते हुए, एक बार फिर से संपूर्ण कर्जमाफी की मांग को पुरजोर तरीके से उठाया है। भाकियू प्रवक्ता चौ. राकेश टिकैत ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर की गई पोस्ट में इस सर्वेक्षण में किए गए खुलासे के आधार पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर बढ़ते कर्ज के बोझ को लेकर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि सांख्यिकी मंत्रालय की अर्धवार्षिक पत्रिका में प्रकाशित सर्वेक्षण यह साबित करता है कि गांवों में आर्थिक संकट गहराता जा रहा है।
राकेश टिकैत ने कहा कि देश की सरकारें जिस वर्ग के बल पर अर्थव्यवस्था को स्थिर और मजबूत बनाए रखती हैं, वही किसान और ग्रामीण वर्ग आज सबसे अधिक आर्थिक दबाव में है। उन्होंने कहा कि मंत्रालय की रिपोर्ट में साफ लिखा है कि देश के 15 प्रतिशत ग्रामीण परिवार कर्जग्रस्त हैं। यह केवल आंकड़ा नहीं, बल्कि गांवों की सच्चाई है। खेती में बढ़ती लागत, घटती आमदनी, और अस्थिर बाजार नीति के चलते किसान अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए भी उधार लेने को मजबूर हैं।
भाकियू प्रवक्ता ने सरकार की नीतियों को ग्रामीण विरोधी बताते हुए कहा कि यदि इसी तरह हालात बने रहे, तो आने वाले वर्षों में ग्रामीण अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा सकती है। उन्होंने कहा कि कर्ज के कारण किसान न केवल आर्थिक रूप से टूट रहा है, बल्कि शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी आवश्यकताओं से भी वंचित होता जा रहा है। राकेश टिकैत ने कहा कि सरकारें किसानों की आय दोगुनी करने की बात करती हैं, लेकिन जब गांवों में हर छठा व्यक्ति कर्ज में डूबा हो, तब ऐसी घोषणाएं केवल राजनीतिक बयानबाजी बनकर रह जाती हैं। हम बार-बार यही कह रहे हैं कि देश को बचाना है तो किसानों की संपूर्ण कर्जमाफी करनी होगी।
उन्होंने कहा कि रिपोर्ट में ग्रामीण अशिक्षा को बड़ी समस्या के रूप में दिखाया गया है, जबकि असल कारण कर्ज और आर्थिक असमानता है। जब तक गांवों को आर्थिक राहत नहीं दी जाएगी, तब तक शिक्षा, रोजगार और विकास के सपने अधूरे रहेंगे। टिकैत ने केंद्र और राज्य सरकारों से आग्रह किया कि वे ग्रामीण विकास योजनाओं की पुनर्समीक्षा करें और किसानों के लिए एक ठोस आर्थिक राहत पैकेज लाने पर विचार करें। बता दें कि सांख्यिकी मंत्रालय के सर्वेक्षण ने ग्रामीण भारत के आर्थिक दर्द को फिर उजागर किया है। बढ़ते कर्ज, घटती आमदनी और महंगी जीवन-व्यवस्था ने गांवों के जीवन स्तर को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। राकेश टिकैत की संपूर्ण कर्जमाफी की यह मांग राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि उन लाखों ग्रामीण परिवारों की आवाज है जो आज भी आर्थिक मुक्ति की राह देख रहे हैं।







