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दशलक्षण महापर्व का आठवां दिन उत्तम त्याग धर्म:

देवबन्द में श्री 1008 दिगंबर पारसनाथ जैन मंदिर जी सरागवाड़ा मे जैन समाज ने दशलक्षण पर्व का आठवां दिन उत्तम त्याग धर्म के रूप मनाया , आंतरिक आसक्तियों, इच्छाओं और मोह का परित्याग करने के उद्देश्य से उत्तम त्याग धर्म का संकल्प लिया गया। जिसमे श्रद्धालुओं ने श्रीजी के समक्ष श्री 108 अरुण सागर जी महाराज के सानिध्य में तत्वार्थ सूत्र विधान किया। पर्व के आठवें दिन उत्तम त्याग धर्म पर महाराज श्री के सानिध्य में श्री जी का अभिषेक ,शांतिधारा ,आरती ,नित्य-नियम पूजा,सोलहकरण पूजा ,दशलक्षण पूजा ,तत्वार्थ सूत्र विधान का आठवें अध्याय के 26 अर्ध चढ़ाए गए। श्रीजी की शांतिधारा का सौभाग्य संजीव कुमार आर्जव जैन परिवार को प्राप्त हुआ। चंदनबाला जैन व अर्चना जैन द्वारा फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। जिसमें बच्चों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। जिसमें बच्चे भारत,शाकाहार,श्रावक,मैनासुंदरी ,ग्वाला ,कमठ ,श्रवण ,इंद्र ,आर्यिका माताजी आदि वेशभूषा में प्रतियोगिता में भाग लिया।
महाराज श्री ने प्रवचन में त्याग का वास्तविक अर्थ बताया की आम तौर पर त्याग का अर्थ किसी चीज़ को छोड़ देना समझा जाता है, लेकिन जैन धर्म में उत्तम त्याग धर्म का अर्थ अधिक व्यापक है। यह केवल धन-संपत्ति या सांसारिक वस्तुओं का भौतिक परित्याग नहीं है, बल्कि इनके प्रति मन में बसी आसक्ति, मोह और स्वामित्व की भावना का भी त्याग है। यह समझना कि कुछ भी स्थायी नहीं है और सब कुछ क्षणभंगुर है, त्याग की पहली सीढ़ी है।
उत्तम त्याग के प्रमुख आयाम

उत्तम त्याग धर्म कई स्तरों पर अभ्यास किया जाता है:

परिग्रह त्याग: यह सबसे स्पष्ट रूप है, जिसमें अनावश्यक वस्तुओं, धन और संपत्ति के संग्रह से बचना शामिल है। इसका उद्देश्य आवश्यकताओं को सीमित करना और संग्रह की प्रवृत्ति को कम करना है।
अहंकार और अभिमान का त्याग: मनुष्य के भीतर अहंकार और अभिमान ही उसकी आत्मा को बांधते हैं. उत्तम त्याग इन मानसिक विकारों को छोड़ने पर जोर देता है, जिससे व्यक्ति नम्र और विनयशील बनता है।
कषायों का त्याग: क्रोध, मान (अभिमान), माया (छल) और लोभ (लालच) – ये चार कषाय हैं जो आत्मा को मैला करते हैं।उत्तम त्याग इन कषायों पर विजय प्राप्त करने और उनसे मुक्त होने का मार्ग दिखाता है।


शरीर के प्रति आसक्ति का त्याग: शरीर नश्वर है और आत्मा से भिन्न है. उत्तम त्याग शरीर के प्रति अत्यधिक मोह और उससे जुड़ी वासनाओं को कम करने की शिक्षा देता है, जिससे आत्मा को उसके वास्तविक स्वरूप का अनुभव हो सके।
विषय-वासनाओं का त्याग: इंद्रियों के सुखों (जैसे स्वाद, स्पर्श, गंध, रूप और शब्द) के प्रति अत्यधिक आसक्ति भी त्यागने योग्य है. यह इंद्रिय संयम के माध्यम से प्राप्त होता है, जिससे मन शांत और एकाग्र होता है।
इस अवसर पर सुदेश जैन ,अनुज जैन ,रविंद्र जैन ,विनोद जैन ,सुनिल जैन ,अंकित जैन ,मनोज जैन ,प्रदिप जैन ,आस्था जैन , अंजू जैन ,निलिमा जैन ,उषा जैन ,सोरभी जैन ,मनिषा जैन ,उर्मिला जैन ,नूतन जैन ,आधविक जैन ,गर्व जैन , पर्व जैन ,दक्ष जैन,मिलन जैन,अन्नत जैन,अंशिका जैन,केवली जैन, धैर्य जैन, अभय जैन साहित जैन समाज उपस्थित रहा।

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