छात्र आत्महत्या रोकथाम नीति के क्रियान्वयन व डीएवी कॉलेज जांच की मांग पर भाकियू अराजनैतिक प्रतिनिधिमंडल ने जिलाधिकारी से की मुलाकात
मुजफ्फरनगर। जनपद में बढ़ते छात्र तनाव और आत्महत्या की घटनाओं के मद्देनज़र अब सामाजिक संगठनों ने आवाज़ तेज़ कर दी है। राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम नीति एवं उम्मीद निर्देशिका को लागू करने की मांग करते हुए भारतीय किसान यूनियन अराजनैतिक ने जिलाधिकारी से हस्तक्षेप की अपील की। संगठन ने डीएवी डिग्री कॉलेज, बुढ़ाना में अव्यवस्थाओं की शिकायतों के आधार पर जांच समिति गठित करने का मुद्दा भी मजबूती से उठाया।
भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक) के एक प्रतिनिधिमंडल ने गुरूवार को जिलाधिकारी से मुलाकात कर जनपद में छात्रों की आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति पर गंभीर चिंता जताई। प्रतिनिधिमंडल ने मांग की कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुरूप जनपद स्तर पर राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम नीति तथा उम्मीद निर्देशिका को तुरंत लागू कराने के लिए एक विशेष समिति गठित की जाए। प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे संगठन के वरिष्ठ पदाधिकारी धर्मेंद्र मलिक ने बताया कि वर्ष 2022 में सर्वाेच्च न्यायालय ने छात्रों की मानसिक स्वास्थ्य सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए देशभर में समिति गठन के निर्देश दिए थे, लेकिन कई जनपदों में इन आदेशों का पूर्ण क्रियान्वयन अब तक नहीं हो पाया है।
उन्होंने कहा कि पढ़ाई के दबाव, प्रतिस्पर्धा और मनोवैज्ञानिक समर्थन की कमी के कारण छात्रों में तनाव लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में उम्मीद निर्देशिका और आत्महत्या रोकथाम नीति को लागू करना बेहद जरूरी है, जिससे मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ संस्थानों में अनिवार्य हों। प्रतिनिधिमंडल ने बुढ़ाना स्थित डीएवी डिग्री कॉलेज में अनियमितताओं और छात्रों से जुड़ी शिकायतों के मद्देनज़र एक स्वतंत्र जांच समिति गठित करने की मांग भी जिलाधिकारी के समक्ष रखी। जिलाधिकारी ने दोनों मुद्दों पर शासनादेश के परीक्षण के बाद समिति गठित करने और कॉलेज की जांच के लिए टीम बनाने का आश्वासन दिया। मुलाकात के दौरान छात्र नेता विषु मलिक, मोहित मलिक, अनुप राठी (एडवोकेट), श्रेय चौधरी, अमृत, कपिल राठी सहित अनेक कार्यकर्ता मौजूद रहे।
भाकियू अराजनैतिक के प्रतिनिधिमंडल ने इन मांगों को प्रमुखता से उठाया
जिलाधिकारी को सौंपे गए पत्र में भाकियू अराजनैतिक ने विस्तार से बताया कि 28 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुकदेव साहा बनाम आंध्र प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले में छात्रों की सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य को लेकर स्पष्ट गाइडलाइन जारी की गई थीं। लेकिन जनपद में इनका प्रभावी पालन नहीं हो रहा है। इसी नीति और निर्देशिका के आधार पर संगठन ने प्रमुख माँगें रखीं।
1. मानसिक स्वास्थ्य कर्मचारियों की अनिवार्य नियुक्ति
100 से अधिक छात्रों वाले प्रत्येक संस्थान में कम से कम एक प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिक, काउंसलर या सामाजिक कार्यकर्ता नियुक्त करने की अनिवार्यता। छोटे संस्थानों को बाहरी मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों से औपचारिक रेफरल सिस्टम बनाने की सलाह। परीक्षा काल या शैक्षणिक बदलाव के दौर में छोटे समूहों के लिए समर्पित मेंटर/काउंसलर नियुक्त किए जाएं।
2. सभी स्टाफ का मानसिक स्वास्थ्य प्रशिक्षण
शिक्षण व गैर-शिक्षण कर्मचारियों को वर्ष में कम से कम दो बार मनोचिकित्सक की सहायता, चेतावनी संकेतों की पहचान, आत्मदृहानि प्रतिक्रिया और रेफरल मेकेनिज्म पर प्रशिक्षण दिया जाए। संवेदनशील पृष्ठभूमि वाले छात्रों के साथ व्यवहार पर भी अनिवार्य प्रशिक्षण हो।
3. गोपनीय रिपोर्टिंग व शिकायत निवारण तंत्र
यौन उत्पीड़न, रैगिंग, बुलिंग जैसी घटनाओं पर रोक के लिए मजबूत व गोपनीय रिपोर्टिंग सिस्टम की स्थापना। पीड़ित छात्रों को तत्काल मनो-सामाजिक सहायता और पेशेवर काउंसलर के पास रेफरल की व्यवस्था।
4. सभी कोचिंग सेंटर का अनिवार्य पंजीकरण
प्रत्येक कोचिंग संस्थान का पंजीकरण अनिवार्य किया जाए। नवीनीकरण केवल तभी हो जब मानसिक स्वास्थ्य सहायता तंत्र, शिकायत निवारण व्यवस्था और छात्र संरक्षण प्रावधान उपलब्ध हों।
5. फीस आधारित अपमान पर रोक
किसी भी छात्र का फीस के कारण सार्वजनिक अपमान न किया जाए तथा ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई की जाए। भाकियू अराजनैतिक की इस पहल को शिक्षा जगत के विशेषज्ञ महत्वपूर्ण मान रहे हैं, क्योंकि बढ़ते शैक्षणिक तनाव और आत्महत्या की घटनाएँ राष्ट्रीय चिंता का विषय बन चुकी हैं। अब जिलाधिकारी द्वारा समिति गठन और जांच के आश्वासन से उम्मीद बंधी है कि छात्र सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में ठोस कदम उठाए जाएंगे।






