डीएपी की किल्लत पर भड़के भाकियू प्रवक्ता बोले-यह खेती का सबसे अहम वक्त है, लेकिन खेतों में खाद नहीं, सरकार का फेलियर उजागर
मुजफ्फरनगर। देशभर में रबी की बुवाई शुरू हो चुकी है, लेकिन इस बार किसान बीज के साथ-साथ खाद के संकट से भी जूझ रहे हैं। खेत तैयार हैं, मौसम अनुकूल है, पर डीएपी खाद की भारी किल्लत ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है। इसी मुद्दे को लेकर भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत ने केंद्र और राज्य सरकारों पर तीखा हमला बोला है।

भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर एक पोस्ट साझा कर देशभर में खाद संकट को लेकर सरकारों की नीतियों पर सवाल उठाए। उन्होंने फेसबुक पर कई तस्वीरें साझा कीं, जिनमें अलग-अलग राज्यों के किसान खाद लेने के लिए लंबी लाइनों में खड़े नजर आ रहे हैं। किसान नेता राकेश टिकैत ने अपनी पोस्ट में लिखाकृहै कि देशभर में डीएपी खाद की किल्लत पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। किसान बोने को तैयार हैं, खेत भी तैयार हैं, लेकिन खाद नहीं है। कई जिलों में किसान लाइन में खड़े हैं, कहीं पर्चियां कट रही हैं, तो कहीं दुकानों पर स्टॉक खत्म का बोर्ड टंगा है। खेती के सबसे अहम समय पर खाद न मिले, तो मेहनत, बीज और लागत सब खतरे में पड़ जाते हैं।
उन्होंने आगे कहा कि सरकारें दावा करती हैं कि खाद की कोई कमी नहीं है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है। अगर किसान धरातल पर कमी झेल रहे हैं, तो यह सवाल उठता है कि गलती प्रबंधन की है, नीतियों की या इरादों की? टिकैत ने सरकार को चेतावनी भरे लहजे में कहा कि किसान को खाद समय पर मिलना उसका हक है, भीख नहीं। भाकियू प्रवक्ता ने कहा कि डीएपी केवल खाद नहीं, बल्कि फसल की नींव हैकृखासकर गेहूं, सरसों और चना जैसी रबी फसलों के लिए। इस कमी का सीधा असर फसलों की उपज, उत्पादन लागत और अंततः देश की अन्न-सुरक्षा पर पड़ेगा। कई जिलों से आ रही रिपोर्टों के अनुसार, किसान खाद के लिए सुबह से लाइन में खड़े हैं, लेकिन शाम तक खाली हाथ लौट रहे हैं। वहीं कुछ क्षेत्रों में निजी दुकानदारों पर कालाबाजारी के आरोप भी लग रहे हैं।
राकेश टिकैत ने सरकार से सवाल किया कि जब हर साल रबी सीजन तय समय पर आता है, तो खाद वितरण में कुप्रबंधन क्यों होता है? उन्होंने मांग की कि केंद्र और राज्य सरकारें तुरंत आपूर्ति तंत्र को दुरुस्त करें और किसानों को राहत पहुंचाएं। कहा कि किसान को समय पर खाद नहीं मिलेगी तो फसलें नहीं होंगी, और फसलें नहीं होंगी तो देश का पेट कौन भरेगा? खाद संकट पर किसानों की बढ़ती बेचैनी अब आंदोलन का रूप भी ले सकती है। राकेश टिकैत जैसे किसान नेता जिस तरह से इस मुद्दे को सोशल मीडिया पर उठा रहे हैं, उससे साफ है कि आने वाले दिनों में यह मामला राजनीतिक और सामाजिक दोनों स्तरों पर तूल पकड़ सकता है।






