1997-2016 के बीच जन्मे लोग रहे सावधान, 70 लाख लोगों ने ली अपडेटेड वैक्सीन
नए वैरिएंट्स के कारण वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य जोखिम बढ़ता हुआ देखा जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक तीन वैरिएंट्स- एरिस ;ईजी.5.1, पिरोला ;बीए.2.86 और एचके.3 के मामले सबसे ज्यादा रिपोर्ट किए जा रहे हैं। ये सभी ओमिक्राॅन के ही सब-वैरिएंट्स हैं, नए वैरिएंट्स आसानी से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी प्रभावित करने वाले हो सकते हैं, जिससे हालिया दिनों में अस्पतालों में मरीजों की संख्या बढ़ी है। फिलहाल कोरोना के सबसे ज्यादा मामले यूके-यूएस और सिंगापुर में रिपोर्ट किए जा रहे हैं।
भारत में कोरोना की स्थिति काफी नियंत्रित है, हालांकि स्वास्थ्य विशेषज्ञ सभी लोगों को संक्रमण से बचाव के लिए उपाय करते रहने की सलाह देते हैं। कोरोना के इन नए वैरिएंट्स के जोखिमों को देखते हुए वैक्सीन निर्माता कंपनियों ने इसके अपडेटेड टीके भी बना लिए हैं। हालिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अमेरिका में 7 मिलियन ;70 लाखद्ध से अधिक लोगों को अपडेटेड वैक्सीन लगाए जा चुके हैं। यूएस डिपार्टंमेंट आॅफ हेल्थ एंड ह्यूमन सर्विसेज द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक बुधवार तक 7 मिलियन से अधिक अमेरिकियों को नए वैरिएंट्स को लक्षित करने वाले टीके लगाए जा चुके हैं। नए वैरिएंट्स के बढ़ते जोखिमों को देखते हुए माॅडर्ना ;एमआरएनए.ओद्ध या फाइजर;पीएफई.एन और बायोएनटेक ;22यूएवाई.डीई ने सिंगल शाॅट वैक्सीन तैयार की है, जिन्हें कोरोनोवायरस के एक्सबीबी. 1.5 ओमिक्राॅन सबवेरिएंट्स के खिलाफ असरदार पाया गया है। अमेरिका ने देश में इन टीकों के देने की शुरुआत कर दी है।
अमेरिकी स्वास्थ्य अधिकारियों ने बताया, 6 महीने और उससे अधिक उम्र के सभी लोगों को ये सिंगल शाॅट वैक्सीन देने की तैयारी है, जिससे उनमें कोरोना के नए वैरिएंट्स के कारण होने वाले संक्रमण के खतरे को कम किया जा सके। नए अपडेटेड टीकों की प्रभाविकता को लेकर किए गए शोध में पाया गया है कि ये ओमिक्राॅन के तेजी से बढ़ने वाले नए वैरिएंट्स से सुरक्षा देने और इसके कारण गंभीर रोग के खतरे से लोगों के बचान में मददगार हैं।
कोरोना ने कई प्रकार से हमारी सेहत पर असर डाला है। इसको लेकर हाल ही में किए गए शोध में वैज्ञानिकों ने चिंता जताते हुए कहा है, कोरोना महामारी के दौर में 18-24 की आयु वाले लोगों में मानसिक स्वास्थ्य पर सबसे ज्यादा असर देखा जा रहा है। भारत के साथ वैश्विक स्तर पर महामारी के दौर में बढ़ी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं एक बड़ी चिंता रही हैं। आंध्र प्रदेश के क्रेया विश्वविद्यालय के सेपियन लैब्स सेंटर फाॅर ह्यूमन ब्रेन एंड माइंड ने मानसिक स्वास्थ्य जोखिमों के बारे में समझने के लिए ये अध्ययन किया जिसमें जेन- ;1997- 2012 के बीच जन्मेद्ध में इसका सबसे अधिक दुष्प्रभाव देखा जा रहा है। इस रिपोर्ट में चिंता जताते हुए कहा गया है कि 2020 में कोरोना महामारी शुरू होने के बाद से इस समूह वालों के मानसिक स्वास्थ्य में नकारात्मक बदलाव देखा जा रहा है। अप्रैल 2020 से अगस्त 2023 के बीच 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 1,06,427 लोगों के डेटा अध्ययन में पाया गया कि युवाओं में स्ट्रेस-एंग्जाइटी और डिप्रेशन की समस्या काफी तेजी से बढ़ी है। चिंताजनक बात ये है कि इनमें से ज्यादातर लोगों में समस्या का सही निदान नहीं हो सका है। मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करने वाली हो सकती हैं।