वो फ्लाइट मिस हो जाती तो शहर को न मिलती आयरन लेडी!
चेयरपर्सन का चौथा साल-नामांकन करने के लिए गया फोन, आखिरी फ्लाइट और सिर्फ दो टिकट, रातों रात वाराणसी से मुजफ्फरनगर पहुंची थी अंजू अग्रवाल, सवेरे ही ठोंक दी थी चुनावी ताल;
मुजफ्फरनगर। नगरपालिका परिषद् में चेयरमैन पद की सीट को कांटों भरा ताज कहा जाता रहा है। यह सीट हमेशा ही विवादों में रही है। कई चेयरमैनों को यहां पर कोर्ट के सहारे विपक्षियों ने कुर्सी से अलग करने का भी काम किया, लेकिन 2017 में हुए चुनावी मुकाबले के बाद नगरपालिका परिष्षद् की चेयरमैन पद की कुर्सी पर जब एक महिला काबिज हुई तो शायद ही किसी को यह अनुमान था कि यह महिला विपरीत परिस्थितियों में शहरी विकास का एक ऐसा शिगूफा छेड़ेंगी, जिसके तरानों पर विपक्षी शोर का हर जोर फीका पड़ता नजर आयेगा। आज चेयरपर्सन के रूप में अंजू अग्रवाल ने अपने सफर का चौथा पड़ाव पूरा किया है। चेयरपर्सन के इस चौथे साल में हम उस एक रात की एक फ्लाइट की कहानी आप तक पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं, जिस फ्लाइट के मिस होने पर शहर को आयरन लेडी के रूप में अंजू अग्रवाल जैसी चेयरपर्सन मिलना शायद मुमकिन नहीं हो पाता।
अंजू अग्रवाल उत्तराखंड से ताल्लुक रखती हैं। वह देवभूमि में पली, बढी और पढ़ी और फिर विवाह के बंधन में बंधकर इंजीनियर अशोक अग्रवाल की संगनी के रूप में लाला मूलचंद सर्राफ जैसी प्रतिष्ठित परिवार का हिस्सा बन गई। पारिवारिक सूत्रों की माने तो अंजू अग्रवाल का जीवन मायके से लेकर ससुराल तक खुली किताब के रूप में रहा है। उनकी कार्यशैली हमेशा से ही इंसाफ पसंद व्यक्ति वाली रही है। परिवार में एक गृहणी के रूप में रहकर भी उन्होंने अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया। परिवार में उनकी कार्यशैली से ही उनकी एक अलग पहचान भी बनी रही। घर की दहलीज से शहर की प्रथम महिला बनने का उनका सफर भी कम रोमांचक नहीं रहा है। जब उनको चुनाव लड़ने के लिए परिवार के मुखिया के रूप में रहे उनके जेठ स्व. लाला मूलचंद ने कहा तो उनकी आंखों में आंसू थे, लेकिन परिवार के सम्मान के लिए वह इंकार नहीं कर पाई और घर से निकलकर चुनावी दंगल में कूद पड़ी।
अंजू अग्रवाल ने नगरपालिका परिषद् में चेयरपर्सन के रूप में 4 साल का सफर पूरा किया है। इस सफर में उनके सामने अने झंझावत आये। विपक्ष ने उनको पदमुक्त करने के लिए शासन और सरकार से लेकर अदालत तक का सहारा लिया, लेकिन चार साल की इस लड़ाई में अंजू अग्रवाल का दामन पाक साफ रहा और हर संघर्ष ने उनको एक मजबूती दी। यही कारण रहा कि इस चार साल में वह जनता के बीच आयरन लेडी का सम्मान पाने में सफल रही। तीन साल में जहां उन्होंने सफलता के सोपान को छुआ, वहीं उनके कार्यकाल का चौथा साल कई बड़े विवादों का हामी बना रहा, लेकिन विपक्ष को चारों खाने चित्त करने का रिकॉर्ड भी उन्होंने इस चौथे साल में बनाया। 6 जुलाई 2021 की बोर्ड मीटिंग उनकी ताकत को साबित करने वाली साबित हुई और इस बोर्ड मीटिंग की सफलता से यह भी स्पष्ट हो गया कि आखिर जनता अंजू अग्रवाल में एक आयरन लेडी क्यों देखती है। इससे अगली बोर्ड मीटिंग में दुर्भाग्यवश जो घटनाक्रम हुआ, उसके बाद भी अंजू अग्रवाल दृढ़ता के साथ डटी रही, जिसके कारण उनकी मजबूत लीडरशिप भी शहरवासियों ने देखी।
अंजू अग्रवाल का राजनीति में आने का कभी मन नहीं था। उनके जेठ के पुत्र प्रमुख उद्यमी पंकज अग्रवाल 2012 में कांग्रेस के टिकट पर नगरपालिका परिषद् के चुनाव में चेयरमैन निर्वाचित हुए। पंकज ने काफी सफलता के साथ यह पद संभाला। इसके बाद इस परिवार का राजनीति से मोह भंग हो गया। 2017 के निकाय चुनाव से इस परिवार ने दूरी बना ली थी। इसी बीच आरक्षण सूची बनी तो नगरपालिका मुजफ्फरनगर चेयरमैन सीट सामान्य महिला के लिए घोषित की गई। इसी बीच कांग्रेस पार्टी ने बिलकिस एडवोकेट को नगरपालिका मुजफ्फरनगर से अध्यक्ष पद के लिए प्रत्याशी घोषित कर दिया। प्रत्याशी की घोषणा होते ही कांग्रेस में हड़कंप मच गया। इसके बाद जिलाध्यक्ष नानू मियां ने तीखा विरोध जताते हुए पार्टी पद से इस्तीफा दे दिया। यही नहीं स्थानीय स्तर पर भी अंदरखाने कांग्रेस में खूब गहमागहमी मची रही।
इस पर हाईकमान ने स्थानीय नेताओं को दोबारा से मंथन करने का निर्देश देते हुए नया प्रत्याशी तलाश करने के लिए जिम्मेदारी दे दी। स्थानीय नेताओं द्वारा पहले स्वरूप परिवार की महिला को मैदान में उतारने का निर्णय लिया गया, बात नहीं बनी तो गेंद पकंज अग्रवाल के पाले में डाल दी गई। पंकज अग्रवाल की पत्नी आरती अग्रवाल को चुनावी मैदान में उतारने पर भी खूब कशमकश हुई, लेकिन आरती ने साफ इंकार कर दिया। इसी बीच नामांकन का अंतिम दिन भी नजदीक आ रहा था। 5 नवंबर 2017 की दोपहर बाद कांग्रेस के लोगों ने पंकज अग्रवाल, वरिष्ठ कांग्रेस नेता सोमांश प्रकाश व हरेंद्र मलिक समेत सभी लोगों ने फिर से मंथन किया। 6 नवंबर को फिर से यह भागदौड़ लाला मूलचंद सर्राफ के आवास तक मची रही, आखिर में पंकज अग्रवाल के चाचा इंजीनियर अशोक अग्रवाल की पत्नी अंजू अग्रवाल के नाम पर सहमति हो गई। देर शाम उन्हें ोकांग्रेस हाईकमान की ओर से चुनाव संबल भी प्रदान कर दिया गया।
यहां जिस समय यह गतिविधि चल रही थी, उस दौरान अंजू अग्रवाल अपनी पति अशोक अग्रवाल के साथ वाराणसी जनपद में धार्मिक यात्रा पर गई हुई थी। जब वह एक प्रसि( मंदिर में दर्शन कर रही थी तो उनके पास फोन आया, जिसमें बताया गया कि तुमको नगरपालिका में चुनाव लड़ना है लौट आओ। चुनाव का नाम सुनकर अंजू अग्रवाल की आंखें नम थी, लेकिन परिवार के जिस सदस्य का यह आदेश था, उसको वह इंकार कर पाने की ताकत नहीं रखती थी। यहीं से शहर को आयरन लेडी के रूप में एक विकासशील सोच रखने वाली चेयरपर्सन मिलने की कहानी शुरू हुई। जिस समय उनको लौटने का आदेश हुआ, रात हो चुकी थी और अगले दिन नामांकन का अंतिम दिन था। किसी भी सूरत में सवेरे तक अंजू अग्रवाल को मुजफ्फरनगर लौटना था।
इसके बाद उनके पति अशोक अग्रवाल ने हवाई जहाज से जाने का विचार किया, क्योंकि केवल यही एक माध्यम था जो समय से अंजू अग्रवाल को नामांकन के लिए ला सकता था। इंजी. अशोक अग्रवाल उस रात की भागदौड़ को याद करते हुए बताते हैं कि उस रात हम होटल लौटे और टिकट का इंतजाम करने में जुट गये थे, लेकिन सभी फ्लाइट बुक हो चुकी थी। केवल एक फ्लाइट ही शेष थी, उसमें भी सीटें फुल होने की जानकारी मिली तो मन निराश हो गया, लेकिन फिर से प्रयास किया गया तो इस अंतिम फ्लाइट में दो सीट खाली होने की जानकारी मिली, हमें दो ही टिकट चाहिए थे। टिकट बुक किये गये और जब हम फ्लाइट पकड़ने के लिए एयरपोर्ट पहुंचे तो देर हो चुकी थी, उद्घोषिका द्वारा हमारे लिये अंतिम उद्घोषणा की जा रही थी। भगवान का शुक्र रहा कि हमें फ्लाइट मिली और हम रात्रि में ही मुजफ्फरनगर पहुंच गये।
आखिरी दिन कलक्ट्रेट में नामांकन करने वालों की भारी भीड़ रही। अंजू अग्रवाल ने अपना नामांकन दर्ज कराया। उनके साथ पूर्व विधायक सोमांश प्रकाश, निवर्तमान चेयरमैन पंकज अग्रवाल, पूर्व सांसद हरेंद्र मलिक, पूर्व मंत्री दीपक कुमार, सुधीर शर्मा, तेगबहादुर सैनी एडवोकेट, नगराध्यक्ष सतीश गर्ग मौजूद रहे। अशोक अग्रवाल के साथ ही परिवार के लोग भी यह मानते हैं कि यदि उस रात वह अंतिम फ्लाइट मिस हो जाती तो शायद अंजू अग्रवाल आज चेयरपर्सन नहीं रहती। इसको लेकर अंजू अग्रवाल का कहना है कि वह हमेशा ही सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ती रही हैं। उनको जनता ने जो भरपूर प्यार दिया, वह उस प्यार और सम्मान के लिए शहरवासियों के हितों को लेकर काम कर रही हैं। इस चार साल के सफर कई उतार चढ़ाव आये, लेकिन जनसहयोग से वह डटे रहने की ताकत हासिल करती रहीं है और ईश्वर की कृपा से अपना पांच साल का कार्यकाल पूर्ण करेंगी।